अमेरिका का बड़ा कदम: चीनी वस्तुओं पर लगेगा 100% टैरिफ

अमेरिकी प्रशासन ने शुक्रवार को घोषणा की कि वह चीन से आने वाले कई उत्पादों पर 1 नवंबर से अतिरिक्त 100% टैरिफ लगाएगा। इससे चीनी आयात पर कुल शुल्क लगभग 130% तक पहुंच जाएगा।
यह निर्णय बीजिंग द्वारा ‘रेयर अर्थ मेटल्स’ के निर्यात पर कड़े नियंत्रण लगाने के बाद लिया गया। ये धातुएं अमेरिका के रक्षा, इलेक्ट्रिक वाहन, और क्लीन एनर्जी सेक्टर के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
वर्तमान में अमेरिका भारतीय वस्तुओं पर 50% शुल्क लगाता है, जिसमें 25% अतिरिक्त टैरिफ शामिल है। रल्हान के अनुसार, “जब चीन पर 100% अतिरिक्त टैक्स लगेगा, तो भारतीय उत्पादों की मांग स्वाभाविक रूप से बढ़ेगी। यह भारत के लिए बेहद अनुकूल स्थिति है।”
उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका के इस कदम से भारतीय कंपनियों के लिए नए अवसर पैदा होंगे।
खिलौना निर्यातक मनु गुप्ता ने कहा, “चीनी वस्तुओं की कीमतें बढ़ने से अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा कम होगी और भारत को समान अवसर मिलेगा। कई अमेरिकी रिटेल कंपनियां पहले ही भारतीय आपूर्तिकर्ताओं से संपर्क कर रही हैं।”
उन्होंने बताया कि अमेरिकी रिटेल दिग्गज ‘टार्गेट’ ने हाल ही में भारतीय उत्पादों में रुचि दिखाई है।
थिंक टैंक GTRI (Global Trade Research Initiative) की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका और चीन के बीच चल रहा व्यापार विवाद इलेक्ट्रिक वाहन, विंड टर्बाइन और सेमीकंडक्टर पार्ट्स जैसी वस्तुओं की वैश्विक कीमतें बढ़ा सकता है। अमेरिका अभी भी इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े, फुटवियर, सोलर पैनल और व्हाइट गुड्स के लिए चीन पर काफी निर्भर है।
वित्त वर्ष 2024–25 में अमेरिका लगातार चौथे वर्ष भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बना रहा।
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कुल द्विपक्षीय व्यापार: 131.84 बिलियन डॉलर
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भारत का अमेरिका को निर्यात: 86.5 बिलियन डॉलर
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अमेरिका भारत के कुल वस्तु निर्यात का 18%, आयात का 6.22%, और कुल व्यापार का 10.73% हिस्सा रखता है।
वर्तमान में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते (FTA) पर बातचीत जारी है। यदि यह समझौता आगे बढ़ा, तो भारत अमेरिकी बाजार में अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकता है।
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अमेरिका-चीन के बीच बढ़ते टकराव से जहां वैश्विक बाजारों में अस्थिरता आई है, वहीं भारत के लिए यह मौका है कि वह खुद को एक विश्वसनीय सप्लाई चेन पार्टनर के रूप में स्थापित करे। निर्यातक अब इस मौके का लाभ उठाने की तैयारी में हैं, खासकर उन सेक्टरों में जहाँ चीन पर निर्भरता अधिक रही है।