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उपराष्ट्रपति पद को लेकर सियासी सरगर्मी तेज, आरिफ मोहम्मद खान माने जा रहे हैं मजबूत दावेदार

देश के नए उपराष्ट्रपति को लेकर राजनीतिक चर्चाएं जोरों पर हैं। जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति दिए जाने के बाद इस संवैधानिक पद को लेकर नई अटकलें शुरू हो गई हैं। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भीतर कई नामों की चर्चा है, लेकिन सबसे अधिक जोर बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के नाम पर दिया जा रहा है।

मोदी की विदेश यात्रा के बाद हो सकता है फैसला

सूत्रों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ब्रिटेन और मालदीव दौरे से लौटने के बाद उपराष्ट्रपति पद को लेकर अंतिम निर्णय लिया जा सकता है। पार्टी के रणनीतिकार और शीर्ष नेतृत्व विभिन्न विकल्पों पर गंभीर मंथन कर रहे हैं।

राजनाथ सिंह ने दोबारा जताई अनिच्छा

पूर्व में जब जगदीप धनखड़ उपराष्ट्रपति पद के लिए चयनित किए गए थे, तब भी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का नाम प्रमुखता से चर्चा में था। लेकिन दो बार भाजपा अध्यक्ष रह चुके राजनाथ सिंह ने तब भी इस पद के लिए रुचि नहीं दिखाई थी और इस बार भी वही रुख बरकरार है। ऐसे में उनके नाम की संभावनाएं कमजोर मानी जा रही हैं।

जेपी नड्डा को लेकर संदेह

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का नाम भी कुछ हलकों में सामने आया है, लेकिन उनके पास वर्तमान में स्वास्थ्य मंत्रालय और रसायन व उर्वरक मंत्रालय जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ हैं। साथ ही, राज्यसभा में नेता सदन की भूमिका भी वह निभा रहे हैं। ऐसे में उन्हें सरकार से हटाकर उपराष्ट्रपति बनाए जाने की संभावना फिलहाल कमजोर दिख रही है।

नीतीश कुमार की मांग को नहीं मिल रहा समर्थन

कुछ क्षेत्रों से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उपराष्ट्रपति बनाए जाने की मांग जरूर उठी है, लेकिन राजनीतिक समीकरण और मौजूदा गठबंधन की स्थिति को देखते हुए उनकी दावेदारी को बहुत मजबूत नहीं माना जा रहा।

आरिफ मोहम्मद खान सबसे आगे

भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से वैचारिक सामंजस्य रखने वाले आरिफ मोहम्मद खान को उपराष्ट्रपति पद के लिए सबसे उपयुक्त चेहरा माना जा रहा है। शाहबानो केस के समय मुस्लिम तुष्टीकरण के खिलाफ अपने स्पष्ट रुख के लिए चर्चित आरिफ खान ने तब राजीव गांधी सरकार के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था।

तीन तलाक, समान नागरिक संहिता और वक्फ संपत्ति जैसे संवेदनशील मुद्दों पर उन्होंने मोदी सरकार के रुख का मुखर समर्थन किया है। सक्रिय राजनीति से लंबे समय तक दूर रहने के बाद उन्हें पहले केरल और फिर बिहार का राज्यपाल बनाया गया। उनका लंबा राजनीतिक अनुभव, स्पष्ट वैचारिक दृष्टिकोण और सरकार के साथ सामंजस्य उन्हें इस पद के लिए प्रबल दावेदार बनाते हैं।

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