
सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद असाधारण फैसले में वैवाहिक विवाद में फंसे एक दंपती को लेकर महत्वपूर्ण आदेश दिया है। देश की शीर्ष अदालत ने एक महिला IPS अधिकारी को अपने पूर्व पति और ससुरालवालों के खिलाफ दर्ज कराए गए गंभीर आपराधिक मामलों के कारण हुई “शारीरिक और मानसिक पीड़ा” को लेकर बिना शर्त सार्वजनिक माफी मांगने का निर्देश दिया है।
अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए पति-पत्नी के बीच सभी आपराधिक और दीवानी मामलों को रद्द कर दिया और अक्टूबर 2018 से अलग रह रहे इस दंपती की शादी को भंग कर दिया।
पति और ससुर को जेल हुई थी
इस मामले में पति को 109 दिन और ससुर को 103 दिन जेल में रहना पड़ा था, जो कि महिला द्वारा दर्ज IPC की धारा 498A, 307 और 376 जैसे गंभीर आरोपों के चलते हुआ। अदालत ने कहा कि इस तरह की तकलीफों की भरपाई कोई भी प्रणाली नहीं कर सकती, इसलिए नैतिक क्षतिपूर्ति के रूप में पत्नी को सार्वजनिक माफी मांगने का आदेश दिया गया।
सार्वजनिक माफी का प्रारूप तय
अदालत ने माफी के लिए शब्दशः प्रारूप तय करते हुए यह भी निर्देश दिया कि वह माफीनामा राष्ट्रीय हिंदी और अंग्रेज़ी अखबारों में प्रकाशित किया जाए, साथ ही फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब सहित अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी प्रसारित किया जाए।
माफी का कानूनी असर नहीं होगा
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह माफीनामा कोई कानूनी दोष स्वीकार नहीं करता, बल्कि इसे केवल नैतिक जिम्मेदारी और शांति के उद्देश्य से देखा जाना चाहिए। साथ ही यह भी कहा गया कि अगर पति या उसका परिवार इस माफीनामे का दुरुपयोग करेगा, तो उन्हें अदालत की अवमानना का सामना करना पड़ेगा।
IPS अधिकारी को दिए गए निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने IPS महिला को यह भी निर्देश दिया कि वे अपने वर्तमान या भविष्य के पद का दुरुपयोग करते हुए पति और उसके परिवार के खिलाफ किसी भी तरह की प्रशासनिक या कानूनी कार्यवाही ना करें।
बेटी मां के साथ रहेगी, भरण-पोषण नहीं मिलेगा
अदालत ने यह भी कहा कि दंपती की बेटी मां के साथ ही रहेगी, लेकिन पिता और उसके परिवार को उससे मिलने का अधिकार रहेगा। इसके अलावा पत्नी को किसी प्रकार का गुजारा भत्ता नहीं मिलेगा, क्योंकि दोनों पक्षों के बीच आपसी सहमति से यह तय हुआ है।