भारत में अमेरिकी राजदूत की नियुक्ति में देरी पर उठे सवाल, क्या ट्रंप प्रशासन भारत को नजरअंदाज कर रहा है?

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद संभालने के करीब छह महीने बीत चुके हैं, लेकिन अब तक अमेरिका ने भारत में अपने नए राजदूत की नियुक्ति नहीं की है। यह देरी खासतौर पर इसलिए चौंकाने वाली मानी जा रही है क्योंकि भारत और अमेरिका के रिश्ते बीते वर्षों में रणनीतिक साझेदारी की नई ऊंचाइयों तक पहुंचे हैं।
अमेरिका ने अब तक पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी अपने राजदूत नहीं भेजे हैं, लेकिन इन दोनों देशों के साथ अमेरिका के रिश्ते उस स्तर के नहीं हैं जैसे भारत के साथ हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि ट्रंप प्रशासन भारत को प्राथमिकता क्यों नहीं दे रहा?
दिल्ली में राजदूत की नियुक्ति का इंतजार
भारत में अमेरिकी राजदूत की गैर-मौजूदगी उस समय और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की स्थिति बनी हो। ऐसे संवेदनशील समय में राजदूत की भूमिका सिर्फ राजनयिक नहीं, बल्कि रणनीतिक होती है। जानकारों के मुताबिक, एक सक्षम राजदूत ना सिर्फ दोनों देशों के बीच संवाद को सुचारु बनाता है, बल्कि संकट की घड़ी में अहम सलाह और संदेशवाहक की भूमिका भी निभाता है।
अमेरिकी थिंक टैंक ‘अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट’ से जुड़े वरिष्ठ विश्लेषक माइकल रुबिन ने कहा, “भारत और पाकिस्तान की संवेदनशील स्थिति को देखते हुए अमेरिका को यहां पूर्णकालिक राजदूत की सख्त जरूरत है। ये दोनों परमाणु शक्ति से लैस देश हैं और हमेशा भू-राजनीतिक तनाव के केंद्र में रहते हैं।”
बाइडेन प्रशासन ने भी की थी देरी
गौरतलब है कि ट्रंप से पहले और बाद में सत्ता में आए जो बाइडेन प्रशासन ने भी भारत में राजदूत नियुक्त करने में लंबा वक्त लिया था। बाइडेन ने जनवरी 2021 में राष्ट्रपति पद संभालने के बाद जुलाई 2021 में एरिक गार्सेटी को भारत के लिए राजदूत नियुक्त किया, लेकिन अमेरिकी सीनेट में उनके नाम पर आपत्ति के चलते उनकी नियुक्ति में लगभग 20 महीने लग गए। उन पर आरोप था कि उन्होंने एक सहयोगी के यौन उत्पीड़न के आरोपों को नजरअंदाज किया। हालांकि मार्च 2023 में मंजूरी मिलने के बाद वे भारत आए और दो वर्षों तक अपनी सेवाएं दीं।
दूसरे देशों को दी गई तरजीह
ट्रंप प्रशासन ने हालांकि चीन और इज़राइल जैसे देशों में तेजी से राजदूतों की नियुक्ति कर दी थी। उदाहरणस्वरूप, डेविड पर्ड्यू को चीन और माइक हुकाबी को इज़राइल में राजदूत बनाकर भेजा गया। साथ ही यूरोप, कनाडा, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी नियुक्तियाँ समय पर की गईं।
यही वजह है कि यह सवाल गहराता जा रहा है कि क्या वॉशिंगटन भारत को अपनी प्राथमिकताओं में उतनी अहमियत नहीं दे रहा जितनी दी जानी चाहिए?
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