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Jharkhand State Sunni Waqf Board:*झारखंड वक्फ बोर्ड की अकूत संपत्ति पर सरकारी नियंत्रण को लेकर मुस्लिम संगठनों में रोष, नए कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की तैयारी*

रांची। वक्फ संशोधन बिल के लोकसभा और राज्यसभा से पारित होने के बाद झारखंड सहित देशभर के वक्फ बोर्डों के प्रशासनिक ढांचे में बड़े बदलाव होने जा रहे हैं। झारखंड राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड, जिसके पास करीब 2000 करोड़ रुपये की संपत्ति है, के गठन में अब सरकारी नियुक्तियों का प्रावधान होगा। नए नियमों के तहत बोर्ड अध्यक्ष का चुनाव नहीं होगा, बल्कि सरकार द्वारा नामित किया जाएगा।
साथ ही बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति अनिवार्य होगी। वर्तमान में झारखंड वक्फ बोर्ड से 153 संस्थाएं संबद्ध हैं, लेकिन हजारों अनाधिकृत रूप से संचालित हो रही हैं। बोर्ड के सदस्य इबरार अहमद के अनुसार, अतिक्रमण और रिपोर्टिंग प्रणाली में कमी के कारण संपत्तियों से पर्याप्त आय नहीं हो पा रही है। उन्होंने देश भर में वक्फ संपत्तियों को लेकर हो रही चर्चा को बेबुनियाद बताया।
झारखंड अल्पसंख्यक वित्त और विकास निगम के निदेशक मुमताज खान ने संशोधन को संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने और राज्यपाल को ज्ञापन देने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि वक्फ की संपत्ति पूरी तरह से धार्मिक मामला है और इसमें गैर-मुस्लिमों की भागीदारी उचित नहीं है।
वहीं, झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने साफ कहा कि राज्य में नया कानून लागू नहीं होने देंगे। उन्होंने केंद्र पर मुस्लिम संपत्ति हड़पने का आरोप लगाते हुए कहा कि वक्फ की जमीन हमारे पूर्वजों की देन है और इसे छीनने की कोशिश की जा रही है।
राष्ट्रीय स्तर पर डीएमके जैसे दलों ने सुप्रीम कोर्ट में बिल को चुनौती देने की योजना बनाई है, जबकि सत्तापक्ष ने इसे गरीब मुस्लिमों के हित में ऐतिहासिक कदम बताया। नए कानून के तहत वक्फ बाय यूजर प्रावधान समाप्त होगा और केवल लिखित दस्तावेजों वाली संपत्तियों को मान्यता मिलेगी। देश भर में 9.4 लाख एकड़ वक्फ संपत्ति (1.2 लाख करोड़ रुपये मूल्य) के पारदर्शी प्रबंधन का सरकार दावा कर रही है।
हालांकि, मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि यह कदम धार्मिक स्वायत्तता पर हमला है। झारखंड वक्फ बोर्ड की वित्तीय स्थिति पहले से ही चिंताजनक है, जहां अतिक्रमण और प्रबंधन की कमजोरियों के कारण घाटा बना हुआ है। बोर्ड से जुड़ी संस्थाएं समय पर आय-व्यय का ब्योरा नहीं देती हैं, जिससे 7% अंशदान भी नहीं मिल पा रहा है।

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