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May 13, strong preparations began at the meeting of the Uraon society in Pulhatu:पारंपरिक संस्कृति और वीरता की पहचान ‘ज्येष्ठ जतरा पर्व’ 

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चाईबासा: आदिवासी उरांव समाज की एक महत्वपूर्ण बैठक चाईबासा के पुलहातु स्थित कुडुख समुदाय भवन में समाज के अध्यक्ष संचू तिर्की की अध्यक्षता में संपन्न हुई। इस बैठक में मुख्य रूप से आगामी ज्येष्ठ जतरा पर्व की तैयारियों पर विचार-विमर्श किया गया। इस पारंपरिक त्योहार को भव्य और सांस्कृतिक गरिमा के साथ मनाने का निर्णय लिया गया।
बैठक में सचिव अनिल लकड़ा ने जतरा पर्व के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह पर्व उरांव समुदाय की अस्मिता, गौरव और वीरता का प्रतीक है। उन्होंने जानकारी दी कि यह त्योहार हर वर्ष वैशाख माह की पूर्णिमा के अगले दिन, यानी पहले जेठ कृष्ण पक्ष को मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 13 मई 2025 (मंगलवार) को मनाया जाएगा। पूर्णिमा की रात्रि यानी 12 मई (सोमवार) को सामूहिक जागरण का आयोजन होगा, जिसमें धार्मिक अनुष्ठान, गीत-संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति होगी।
इतिहास से जुड़ा है जतरा पर्व का गौरवशाली अतीत
सचिव लकड़ा ने कहा कि यह पर्व केवल उत्सव नहीं बल्कि हमारे समाज के गौरवशाली इतिहास की याद भी है। हजारों वर्ष पूर्व जब विदेशी आक्रांताओं ने अनार्य वंशज उरांव समुदायों पर आक्रमण कर रोहतासगढ़ किले को हड़पने का प्रयास किया, तब हमारी समाज की वीरांगनाओं ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर तीन बार दुश्मनों से युद्ध लड़ा और तीनों बार उन्हें परास्त किया। यह विजयगाथा आज भी उरांव समाज की प्रेरणा है। इसी जीत की याद में हमारे पारंपरिक नीले झंडे पर तीन लकीरें बनाई जाती हैं, जो इस त्रैविक विजय की प्रतीक हैं।
इन युद्धों के उपरांत हमारे पूर्वजों ने भव्य नृत्य, गीत-संगीत और सामूहिक उत्सवों के माध्यम से विजयोत्सव मनाया था। आज भी यह पर्व उन्हीं वीर योद्धाओं की स्मृति में हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
समाज को जोड़ने वाला पर्व है जतरा
अध्यक्ष संचू तिर्की और मुख्य सलाहकार सहदेव किस्पोट्टा ने अपने संबोधन में कहा कि जतरा पर्व न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि यह समाज को एकसूत्र में बांधने का कार्य करता है। उन्होंने सभी समाजजनों से पर्व को पारंपरिक रीति-रिवाजों, रंग-बिरंगे परिधानों, नृत्य-गीतों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ आकर्षक एवं भव्य रूप से मनाने का आग्रह किया।

बैठक में समाज के कई गणमान्य सदस्य रहे उपस्थित
इस बैठक को सफल बनाने में समाज के अनेक वरिष्ठ एवं युवा सदस्यों ने सक्रिय भागीदारी निभाई। उपस्थित लोगों में प्रमुख रूप से बाबूलाल बरहा, लालू कुजूर, दुर्गा खलखो, गणेश कच्छप, मंगल खलखो, राजकमल लकड़ा, सुमित बरहा, संजय नीमा, चंदन कच्छप, शंभू टोप्पो, चमरू लकड़ा, सीताराम मुंडा, पंकज खलखो, तेजो कच्छप, राजेन्द्र कच्छप, भोला कुजूर, महावीर बरहा, रोहित खलखो, बाबूलाल कुजूर, मोहान बरहा, विष्णु मिंज, सुशील बरहा, बिरेन्द्र उरांव, भरत खलखो, भीमा बरहा, भरत कुजूर, शंकर कच्छप, विजय टोप्पो, बिरसा कच्छप, विजय तिर्की, भीमा मिंज, गंदरा खलखो, किरण नुनिया समेत दर्जनों गणमान्य सदस्य शामिल हुए।
बैठक में जतरा पर्व के सफल आयोजन के लिए विभिन्न समितियों के गठन, पारंपरिक वेशभूषा की व्यवस्था, सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रूपरेखा और प्रचार-प्रसार की रणनीतियों पर भी विस्तार से चर्चा की गई।

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