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जनस्वास्थ्य का सबसे बड़ा संकट

हवा जो ज़िंदगी ले रही है !

नई दिल्ली: वायु प्रदूषण अब पर्यावरण नहीं, बल्कि जनस्वास्थ्य का सबसे बड़ा संकट बन चुका है।यह अस्थमा, हृदय रोग, स्ट्रोक, फेफड़ों के कैंसर और गर्भवती महिलाओं में  बीमारियों को बढ़ा रहा है | बच्चों की सांस की नलियाँ कमजोर हो रही हैं, बुज़ुर्गों में ऑक्सीजन की कमी और थकावट आम हो गई है।

WHO के अनुसार, प्रदूषण के कारण जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) में औसतन 2 से 3 वर्ष की कमी आई है — यानी हर भारतीय की उम्र कम हो रही है।

दुनिया आगे बढ़ रही है — भारत को भी अब कदम बढ़ाना होगा

कई देश जैसे चीन और अमेरिका, जो कभी सबसे प्रदूषित देशों में थे, अब सख्त नीतियों और तकनीक के ज़रिए हवा को साफ करने में सफल हो रहे हैं।
बीजिंग ने कोयले की जगह स्वच्छ ऊर्जा अपनाई, जबकि अमेरिका ने उद्योगों के उत्सर्जन पर कड़ा नियंत्रण लगाया।
भारत भी “नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP)” के तहत 131 शहरों में प्रदूषण कम करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। सरकार का लक्ष्य है कि 2026 तक वायु प्रदूषण में 40% तक कमी लाई जाए — लेकिन इसके लिए जनसहयोग ज़रूरी है।

  • दिल्ली की दस वर्षीय सिया सर्दियों में हर बार अस्पताल का रास्ता देखती है।
    खेलते-खेलते अचानक खाँसी का दौरा पड़ता है और फिर नेब्युलाइज़र से राहत मिलती है।
  • डॉक्टर कहते हैं — यह सिर्फ ठंड नहीं, यह हवा में जहर है। सिया अकेली नहीं है; भारत में लाखों बच्चे और बुज़ुर्ग ऐसी ही “अदृश्य बीमारी” से जूझ रहे हैं।
  • विश्व प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल ‘द लैंसेट’ की ताज़ा रिपोर्ट ने भारत के लिए बड़ी चेतावनी दी है।
    रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 में देश में वायु प्रदूषण से लगभग 17.18 लाख लोगों की मौत हुई,
    जिनमें से लगभग 44 प्रतिशत मौतें फॉसिल फ्यूल (कोयला, पेट्रोल, डीज़ल) से निकलने वाले प्रदूषण की वजह से थीं।
    यह संख्या भारत में सड़क दुर्घटनाओं, कुपोषण और मलेरिया से हुई कुल मौतों से भी कहीं अधिक है।

भारत की हवा क्यों हो रही है ज़हरीली

भारत की हवा अब सिर्फ फैक्ट्रियों या वाहनों से नहीं, बल्कि हमारी जीवनशैली और आदतों से भी ज़हरीली हो रही है। हर दिन जलता कचरा, कटते पेड़, और बढ़ते निर्माण कार्य वातावरण में धूल और धुआँ घोल रहे हैं।
ऊर्जा की जरूरतों के लिए कोयले पर निर्भरता ने हवा में ज़हरीली गैसों की मात्रा बढ़ा दी है।
गाँवों में अब भी लकड़ी और कोयले से चूल्हे जलते हैं, जिससे घर का धुआँ भी प्रदूषण का कारण बन रहा है।
दरअसल, हवा की गंदगी सिर्फ वातावरण में नहीं, हमारी सोच में भी बस गई है — जब तक हम अपने व्यवहार नहीं बदलेंगे, हवा को साफ रखना मुश्किल रहेगा।

भारत की आबादी और औद्योगिक विकास पिछले दशक में तेजी से बढ़े हैं।
लेकिन इसके साथ ही प्रदूषण के स्रोत भी बढ़े —

  • सड़कों पर बढ़ते वाहनों का धुआँ
  • पराली जलाने की समस्या
  • निर्माण स्थलों की धूल
  • और फैक्ट्रियों से निकलने वाली जहरीली गैसें

दिल्ली, लखनऊ, पटना, कानपुर और मुंबई जैसे शहर लगातार दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में बने हुए हैं। WHO के अनुसार, भारत के लगभग हर बड़े शहर में PM2.5 स्तर सुरक्षित सीमा से कई गुना ज़्यादा है।
अब यह समस्या केवल महानगरों की नहीं, बल्कि छोटे कस्बों और ग्रामीण इलाकों तक पहुँच चुकी है।
प्रदूषण का असर सिर्फ हवा पर नहीं, जीवन पर है

अगर कदम उठाए जाएँ तो फायदे अनगिनत हैं :-

स्वच्छ हवा सिर्फ साँसों की राहत नहीं देती, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करती है।
स्वस्थ नागरिक अधिक उत्पादक होते हैं, बीमारियों पर खर्च घटता है और पर्यावरण का संतुलन सुधरता है।
हरी-भरी सड़कों, खुले आसमान और बेहतर मौसम से पर्यटन भी बढ़ता है, जो सीधे देश की आय को प्रभावित करता है।

संक्षेप में — स्वच्छ हवा जनस्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण – तीनों के लिए जीत है।

 हम क्या सीख सकते हैं ?

विकास और पर्यावरण का संतुलन बनाना ही स्थायी प्रगति की पहचान है। नीतियाँ बनाना पर्याप्त नहीं — उनका सही पालन आवश्यक है। हर नागरिक का छोटा प्रयास बड़े बदलाव की नींव बन सकता है। बच्चों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करना आने वाले भारत की नींव मजबूत करेगा।
क्या हो सकते हैं हमारे कदम

  • सरकार को पुराने वाहनों और कोयले आधारित उद्योगों पर नियंत्रण सख्त करना चाहिए।
  • किसानों को पराली न जलाने के लिए वैकल्पिक साधन और आर्थिक सहायता दी जाए।
  • नागरिकों को सार्वजनिक परिवहन का प्रयोग, पेड़ लगाना और ऊर्जा का संयमित उपयोग अपनाना चाहिए।
  • मीडिया और स्कूलों में पर्यावरण शिक्षा को प्राथमिकता देना चाहिए।

 निष्कर्ष: स्वच्छ हवा, स्वच्छ भारत
लैंसेट की रिपोर्ट एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक अवसर भी है —

कि अब हम अपनी गलतियों से सीखें और अपने बच्चों के लिए एक स्वच्छ भविष्य बनाएं।
हवा को साफ रखना कोई विलासिता नहीं, यह हर भारतीय का मौलिक अधिकार है।
हमारे छोटे कदम — जैसे कारपूलिंग, पेड़ लगाना, या धुआँ कम करना — धीरे-धीरे इस संकट को कम कर सकते हैं।

भारत की प्रगति तभी सार्थक होगी जब उसका आसमान नीला, हवा पारदर्शी और नागरिक स्वस्थ होंगे।
अब समय आ गया है कि हम विकास की दौड़ को “सांसों की दौड़” में न बदलें।
साफ हवा सिर्फ हमारे लिए नहीं, उन पीढ़ियों के लिए है जो अभी पैदा भी नहीं हुईं।

अब समय आ गया है कि हम सिर्फ शिकायतें करने के बजाय अपनी जिम्मेदारी समझें। अगर हर नागरिक एक पेड़ लगाए, प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करे और निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक परिवहन अपनाए, तो भारत की हवा फिर से सांस लेने लायक बन सकती है। स्वच्छ हवा कोई सपना नहीं, बल्कि हमारे सामूहिक प्रयासों से सच होने वाली उम्मीद है। जरूरत सिर्फ इतनी है कि हम इस बदलाव को अपनी आदत और दिनचर्या का हिस्सा बना लें, क्योंकि जब हर व्यक्ति आगे बढ़ेगा, तभी देश वास्तव में “स्वच्छ भारत” का अर्थ जी सकेगा।

PRAGATI DIXIT
Author: PRAGATI DIXIT

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