
Digital Fasting: बेंगलुरु में लोग अब डिजिटल उपवास यानी स्क्रीन से दूरी बनाकर मानसिक शांति पा रहे हैं। बेंगलुरु के कई लोग गैजेट्स का इस्तेमाल कम कर रहे हैं और इससे उन्हें खुशी मिल रही है। निमहांस के विशेषज्ञों का कहना है कि औसतन लोग रोज 8 घंटे स्क्रीन पर बिताते हैं। डिजिटल उपवास से न सिर्फ समय बच रहा है, बल्कि काम की गुणवत्ता भी बढ़ रही है। आइए, इस नई आदत की खास बातें जानें।
Digital Fasting: जानें इसका मतलब
डिजिटल उपवास में लोग फोन, लैपटॉप और टीवी जैसे गैजेट्स से कुछ समय के लिए दूरी बनाते हैं। बेंगलुरु में कई लोग दिन में 2-3 घंटे स्क्रीन से दूर रहकर किताबें पढ़ रहे हैं, परिवार के साथ समय बिता रहे हैं या बाहर टहल रहे हैं। निमहांस के मनोज शर्मा बताते हैं कि इससे मानसिक तनाव कम होता है और लोग ज्यादा खुश रहते हैं।
गैजेट्स की लत का असर
शहर के ज्यादातर घरों में गैजेट्स की संख्या लोगों से ज्यादा है। निमहांस की स्टडी के अनुसार, बेंगलुरु में लोग रोजाना 8 घंटे स्क्रीन पर समय बिताते हैं। यह आदत नींद, रिश्तों और काम की गुणवत्ता को प्रभावित करती है। डिजिटल उपवास करने वाले लोग कहते हैं कि गैजेट्स छोड़ने से उनकी दिनचर्या बेहतर हुई और वे तरोताजा महसूस करते हैं।
क्यों अपनाया जा रहा उपवास
41 वर्षीय रम्या श्रीपति ने कहा कि पहले डिजिटल उपवास उन्हें कठिन लगता था। अब वह रोज कुछ घंटे फोन से दूर रहकर किताबें पढ़ती हैं, जिससे उनकी एकाग्रता बढ़ी है। मनोज शर्मा के अनुसार, अकेलापन, खाली समय या गैजेट्स की आसान पहुंच लोगों को स्क्रीन से जोड़े रखती है। इन कारणों को समझने से डिजिटल उपवास शुरू करना सरल हो जाता है।
बेहतर जीवन का रास्ता
डिजिटल उपवास करने वाले लोग नई गतिविधियां अपना रहे हैं, जैसे योग, बागवानी या दोस्तों से मिलना। इससे उनकी उत्पादकता और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार हुआ है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि रोज 1-2 घंटे स्क्रीन से दूरी बनाएं और ऑफलाइन गतिविधियों पर ध्यान दें। बेंगलुरु में यह ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है।
Digital Fasting: क्या होगी आगे की राह?
बेंगलुरु के लोग डिजिटल उपवास को जीवन का हिस्सा बना रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर स्कूल और ऑफिस भी ऑफलाइन गतिविधियों को बढ़ावा दें, तो यह बदलाव और बड़ा होगा।

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