
महाराष्ट्र की राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ तब आया जब उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे लगभग दो दशक बाद एक ही मंच पर नजर आए। 5 जुलाई को मुंबई में आयोजित ‘मराठी विजय रैली’ में दोनों नेताओं की साझा मौजूदगी ने न सिर्फ शिवसैनिकों में उत्साह भर दिया, बल्कि राज्य की राजनीति में हलचल भी मचा दी।
संजय निरुपम का कटाक्ष: ‘MVA नहीं TVA’
इस राजनीतिक घटनाक्रम पर एकनाथ शिंदे खेमे के नेता संजय निरुपम ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर उन्होंने तंज कसते हुए लिखा, “फ्रॉम MVA टू TVA… यानी महा विकास अघाड़ी अब बदलकर ठाकरे विकास अघाड़ी बन गई है। कांग्रेस को किनारे कर एक नया गठबंधन उभरता दिख रहा है।”
ठाकरे भाइयों की एकजुटता बनी चर्चा का केंद्र
यह पहली बार है जब शिवसेना के संस्थापक दिवंगत बालासाहेब ठाकरे के दोनों बेटे—राज और उद्धव—एक लंबे अंतराल के बाद सार्वजनिक रूप से साथ दिखाई दिए। ‘मराठी विजय रैली’ में एकजुट होकर मंच साझा करने की इस तस्वीर को सियासी गलियारों में ‘मास्टरस्ट्रोक’ के तौर पर देखा जा रहा है। कई विश्लेषक मान रहे हैं कि आने वाले मुंबई नगर निगम चुनावों से पहले ठाकरे भाइयों की नजदीकी, शिंदे गुट और बीजेपी के लिए चुनौती बन सकती है।
हिंदी पर उद्धव ठाकरे का तीखा बयान
रैली में उद्धव ठाकरे ने केंद्र सरकार पर सीधा हमला बोलते हुए कहा, “हमें हिंदू और हिंदुस्तान मंजूर हैं, लेकिन हिंदी नहीं।” उन्होंने आरोप लगाया कि देश में जबरन हिंदी थोपने की कोशिश हो रही है, जो मराठी अस्मिता के खिलाफ है। उन्होंने यह भी जोड़ा, “हमने मुंबई के लिए लड़ाई लड़ी है। उस समय के राजनेताओं ने नहीं चाहा कि महाराष्ट्र में मराठी भाषा को महत्व मिले। आज फिर मराठी संस्कृति पर खतरा मंडरा रहा है, जिसे हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।”
क्या वाकई साथ आएंगे ठाकरे भाई?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह साथ आना केवल मंच साझा करने तक सीमित नहीं रहेगा। निकाय चुनाव से पहले अगर राज और उद्धव ठाकरे का गठबंधन आकार लेता है, तो यह बीजेपी और शिंदे गुट के लिए बड़ा झटका हो सकता है। विशेष रूप से मुंबई और ठाणे जैसे शहरी क्षेत्रों में जहां मराठी मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
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