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जस्टिस यशवंत वर्मा पर महाभियोग की प्रक्रिया शुरू, संसद के मानसून सत्र में उठा मामला

संसद के मानसून सत्र के पहले दिन 21 जुलाई 2025 को एक बड़ा संवैधानिक घटनाक्रम देखने को मिला, जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया की शुरुआत की गई। यह मामला दिल्ली स्थित उनके सरकारी आवास पर 14 मार्च 2025 को लगी आग और वहां से मिली अधजली नकदी को लेकर उठा है, जिसे सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति ने गंभीर कदाचार का मामला करार दिया है।

14 मार्च को रात 11:35 बजे जस्टिस वर्मा के 30 तुगलक क्रिसेंट स्थित आवास में आग लगी थी। आग बुझाते समय स्टोररूम से दमकलकर्मियों और पुलिस को 500-500 रुपये के अधजले नोटों के ढेर बरामद हुए। इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की गई, जिसमें पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागू, हिमाचल हाई कोर्ट के सीजे जस्टिस जीएस संधवालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थे।

समिति ने 10 दिनों तक जांच कर 55 गवाहों के बयान दर्ज किए और घटनास्थल का निरीक्षण किया। अपनी 64 पेज की रिपोर्ट में समिति ने कहा कि: स्टोररूम में नकदी जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के नियंत्रण में थी। नकदी के स्रोत के बारे में जस्टिस वर्मा संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। जस्टिस वर्मा ने इसे साजिश बताया, लेकिन कोई ठोस साक्ष्य नहीं दिया। अधजली नकदी हटाने की कोशिश उनके निजी सचिव और कर्मचारियों ने की।

इन तथ्यों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने 3 मई को रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपी, जिसमें जस्टिस वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश की गई।

महाभियोग की प्रक्रिया कैसे शुरू हुई?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) और जजेस इंक्वायरी एक्ट, 1968 के तहत किसी जज को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों या राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है।

21 जुलाई को लोकसभा में बीजेपी, कांग्रेस, जेडीयू, माकपा, तेदेपा, जेडीएस समेत 145 सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को महाभियोग प्रस्ताव सौंपा। राज्यसभा में भी कांग्रेस सांसद नासिर हुसैन सहित 60 से अधिक सांसदों ने समर्थन किया। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि सभी दलों से चर्चा कर आगे की कार्रवाई तय की जाएगी।

जस्टिस वर्मा का जवाब

जस्टिस वर्मा ने सभी आरोपों को नकारते हुए इसे एक राजनीतिक साजिश बताया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर जांच समिति की रिपोर्ट को खारिज करने की मांग की और कहा कि उन्हें उचित सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया। उन्होंने दावा किया कि स्टोररूम एक खुली जगह थी और नकदी जैसी कोई चीज़ वहां नहीं थी। हालांकि समिति ने स्पष्ट किया कि स्टोररूम बंद था और उसके नियंत्रण में केवल जस्टिस वर्मा और उनके परिजन थे।

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस महाभियोग प्रस्ताव का समर्थन किया है। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इस प्रक्रिया को असंवैधानिक बताते हुए कहा कि पहले विधिवत जांच होनी चाहिए। वहीं वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि महाभियोग केवल पद से हटाने की प्रक्रिया है, इसे आपराधिक मुकदमा नहीं माना जा सकता।

स्वतंत्र भारत में अब तक पांच न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया है, लेकिन किसी को हटाया नहीं गया। जस्टिस वी. रामास्वामी (1993) और जस्टिस सौमित्र सेन (2011) ने मतदान से पहले इस्तीफा दे दिया था। अगर इस बार प्रस्ताव पारित होता है, तो यह पहला मौका होगा जब कोई हाई कोर्ट जज महाभियोग के जरिए पद से हटाया जाएगा।

मानसून सत्र 12 अगस्त 2025 तक चलेगा और इस दौरान जस्टिस वर्मा के खिलाफ प्रस्ताव पर चर्चा और मतदान संभव है। अगर प्रस्ताव पास होता है तो राष्ट्रपति उसे मंजूरी देकर जस्टिस वर्मा को पद से हटा सकती हैं। हालांकि अगर वे इस्तीफा दे देते हैं, तो यह प्रक्रिया वहीं रुक जाएगी।

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