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अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर के बीच भारत को बड़ा फायदा, एथेन गैस लेकर अमेरिका से गुजरात पहुंचा जहाज

अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर: अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध ने वैश्विक सप्लाई चेन पर जहां व्यापक असर डाला है, वहीं भारत के लिए यह एक अवसर की तरह सामने आया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अप्रैल में दुनियाभर के कुछ प्रमुख देशों पर टैरिफ लगाने के बाद चीन और अमेरिका के बीच तनाव और गहराता चला गया। इस टकराव के चलते अमेरिकी कंपनियों ने चीन से कारोबार हटाकर भारत की ओर रुख करना शुरू कर दिया है, जिसका प्रत्यक्ष लाभ देश की इंडस्ट्रीज को मिलने लगा है।

एपल जैसी कंपनियां भारत की ओर, चीन नाराज़

ट्रेड वॉर की शुरुआत के बाद एपल जैसी टेक दिग्गज कंपनियों ने चीन से उत्पादन हटाकर भारत में निवेश बढ़ाने का फैसला लिया। एपल के साथ काम करने वाली प्रमुख ताइवानी कंपनी फॉक्सकॉन ने दक्षिण भारत में अपने आईफोन मैन्युफैक्चरिंग प्लांट में उत्पादन तेज़ कर दिया है। हालांकि हाल ही में खबर आई कि चीन के दबाव के चलते वहां से कुछ टेक्नीशियन और इंजीनियरों को भारत से वापस बुला लिया गया, जिससे उत्पादन की रफ्तार कुछ प्रभावित हो सकती है।

भारत की ओर बढ़ता अमेरिकी व्यापार

इस बीच ब्लूमबर्ग की एक अहम रिपोर्ट सामने आई है, जो बताती है कि अमेरिका से निकलने वाला एथेन गैस का एक बड़ा खेप अब चीन के बजाय भारत पहुंच रहा है। ‘एसटीएल क्विजियांग’ नामक यह जहाज अमेरिका के गल्फ कोस्ट से एथेन लेकर गुजरात के दाहेज टर्मिनल पर पहुंच चुका है। यहां पर मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज़ इसका स्वागत कर रही है।

रिलायंस को होगा सीधा लाभ

रिलायंस इंडस्ट्रीज़ ने साल 2017 में दाहेज में एथेन हैंडलिंग यूनिट स्थापित की थी, जो इस गैस से एथिलीन कैमिकल तैयार करती है। एथिलीन का उपयोग प्लास्टिक निर्माण सहित कई औद्योगिक कार्यों में किया जाता है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि डिजिटल और रिटेल क्षेत्र में मुकेश अंबानी ने भले ही भारी निवेश किया हो, लेकिन उनकी ऑयल-टू-केमिकल (O2C) यूनिट अब भी कंपनी की कमाई का प्रमुख स्रोत बनी हुई है, जिससे सालाना 74 अरब डॉलर तक की आय होती है।

एथेन बनाम नाफ्था

अब तक भारत में एथिलीन उत्पादन के लिए परंपरागत रूप से नाफ्था का प्रयोग होता रहा है, जो कि कच्चे तेल से रिफाइनिंग के दौरान निकाला जाता है। लेकिन नाफ्था के मुकाबले एथेन कहीं अधिक कुशल विकल्प है। नाफ्था से जहां केवल 30% गैस का प्रभावी उपयोग हो पाता है, वहीं एथेन से यह प्रतिशत बढ़कर 80% तक पहुंच जाता है।

भारत की ऊर्जा नीति में संभावित बदलाव

भले ही भारत की अर्थव्यवस्था फिलहाल कच्चे तेल पर ही टिकी हो, लेकिन यदि अमेरिका से एथेन की आपूर्ति सुचारु रूप से जारी रहती है, तो आने वाले वर्षों में देश की ईंधन नीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। रिलायंस जैसी कंपनियों के लिए यह एक रणनीतिक मौका है, जो उन्हें पारंपरिक तेल-निर्भरता से आगे ले जाकर गैस-आधारित भविष्य की ओर बढ़ा सकता है।

अभी स्थिर, लेकिन संभावनाएं प्रबल

फिलहाल अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर थमा हुआ प्रतीत होता है, लेकिन दोनों देशों के बीच अविश्वास की खाई अब भी बरकरार है। ऐसे में भारत जैसे उभरते बाजारों को जहां एक ओर स्थायी व्यापार साझेदारी बनाने का मौका है, वहीं दूसरी ओर यह जिम्मेदारी भी है कि वह इस अवसर को दीर्घकालिक रणनीति में बदले।

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