
पटना के मशहूर शिक्षक और यूट्यूबर खान सर एक बार फिर सुर्खियों में हैं। हाल ही में उनके एक बयान ने सोशल मीडिया पर हंगामा मचा दिया है, जिसमें उन्होंने भारत-अमेरिका संबंधों के बिगड़ने पर जीमेल बंद होने और उससे जुड़ी डिजिटल सेवाओं के ठप होने की बात कही। इस बयान को कई लोगों ने अतिरंजित और गलत बताया, जबकि कुछ ने इसे राजनीतिक टिप्पणी के रूप में देखा। लेकिन सवाल उठता है: क्या शिक्षकों का राजनीतिक टिप्पणियों में शामिल होना सही है?
अगर एक शिक्षक राजनीति में कूद जाए तो छात्रों का भविष्य कैसा होगा? और क्या खान सर की साफ-सुथरी छवि उन्हें राजनीति में एंट्री दिला सकती है, जहां छल-कपट आम है?
खान सर के हालिया बयान और राजनीतिक टिप्पणियां
खान सर ने हाल ही में एक वीडियो में दावा किया कि अगर भारत डोनाल्ड ट्रंप या अमेरिका से सवाल करेगा, तो अमेरिका जीमेल बंद कर सकता है, जिससे यूपीआई, व्हाट्सएप, फेसबुक जैसी सेवाएं ठप हो जाएंगी। उन्होंने कहा कि जीमेल भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था का आधार है और इसका बंद होना देश को घुटनों पर ला देगा।
हालांकि, फैक्ट-चेकर्स ने इसे भ्रामक बताया। विशेषज्ञों के मुताबिक, यूपीआई एनपीसीआई की भारतीय इंफ्रास्ट्रक्चर पर चलता है, जो जीमेल से स्वतंत्र है, और जीमेल के विकल्प जैसे जोहो, आउटलुक मौजूद हैं। सोशल मीडिया पर इस बयान की जमकर ट्रोलिंग हुई, जहां यूजर्स ने इसे “अतार्किक” और “डर फैलाने वाला” करार दिया।
इससे पहले, 2025 की शुरुआत में खान सर ने बिहार चुनावों पर चर्चा की। फरवरी में ‘आइडियाज ऑफ इंडिया समिट’ में उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति राष्ट्र नहीं बदल सकता, पूरी जनता को बदलना होगा। उन्होंने राजनीति में आने की अफवाहों को खारिज करते हुए कहा कि अगर लोग अपने अधिकार मांगें, तो कोई भी नेता बन सकता है। दिसंबर 2024 में बीपीएससी परीक्षा के विरोध प्रदर्शनों में उनकी सक्रिय भूमिका रही, जहां उन्होंने छात्रों के हक में भड़काऊ भाषण दिए और पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए।
जून 2025 में तेजस्वी यादव के साथ उनकी शादी की मजाकिया बातचीत भी वायरल हुई, जो राजनीतिक कनेक्शन की ओर इशारा करती है।
क्या शिक्षकों का राजनीति में शामिल होना सही है?
खान सर जैसे शिक्षकों की राजनीतिक टिप्पणियां एक बड़ी बहस को जन्म देती हैं। एक तरफ, शिक्षक समाज के विचारक होते हैं और राजनीतिक मुद्दों पर बोलकर छात्रों को जागरूक बना सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, खान सर ने बीपीएससी जैसे मुद्दों पर छात्रों की आवाज उठाई, जो शिक्षा प्रणाली की खामियों को उजागर करती है। लेकिन दूसरी तरफ ये सवाल भी उठता है कि, क्या इससे छात्रों का भविष्य प्रभावित होता है? अगर एक शिक्षक राजनीतिक हस्तक्षेप करने लगे, तो कक्षा में निष्पक्षता खत्म हो सकती है। छात्र राजनीतिक पूर्वाग्रहों से प्रभावित हो सकते हैं, जो उनकी शिक्षा और करियर पर असर डालता है। विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षकों का मुख्य काम पढ़ाना है, न कि राजनीतिक एजेंडा चलाना, वरना छात्रों का फोकस बंट जाता है और वे परीक्षाओं में पिछड़ सकते हैं।
क्या खान सर राजनीति में एंट्री करना चाहते हैं?
खान सर की साफ-सुथरी छवि, जो गरीब छात्रों को सस्ती शिक्षा देने से बनी है, उन्हें राजनीतिक उम्मीदवार के रूप में आकर्षक बनाती है। लेकिन उन्होंने बार-बार स्पष्ट किया कि उनका राजनीति में आने का कोई इरादा नहीं है। दिसंबर 2024 में उन्होंने कहा, “मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा, मेरे पास पढ़ाने का भी समय नहीं है। 2025 चुनाव जल्दी खत्म हों ताकि ये सिरदर्द खत्म हो। फरवरी 2025 में एक इंटरव्यू में उन्होंने राजनीति में आने की अफवाहों को “परेशान करने वाला” करार दिया था।
बिहार चुनाव 2025 के संदर्भ में भी कोई “बड़ा खुलासा” नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने अपनी शिक्षा यात्रा पर फोकस किया।
अगर पॉलिटिक्स में एंट्री हुई तो बेबाकी बनी रहेगी?
मान लीजिए खान सर राजनीति में आते हैं, तो क्या उनकी बेबाकी बरकरार रहेगी? राजनीति में छल-दंभ, समझौते और गठबंधन आम हैं। खान सर का स्टाइल, सीधी और स्पष्ट बात करना है, तो शायद वो राजनीति में टिक न पाए, क्योंकि राजनीति में बोलने की आजादी तो होती है पर उसमें सच कितना होता है इसका भरोसा नहीं।
अगर वे पॉलिटिक्स में आएं, तो शायद शिक्षा सुधार जैसे मुद्दों पर बदलाव ला सकते हैं, पर छात्रों पर इसका नकारात्मक असर भी पड़ सकता है। खान सर की टिप्पणियां शिक्षा और राजनीति के बीच की महीन रेखा को उजागर करती हैं। क्या शिक्षक सिर्फ शिक्षक रहें या समाज बदलने के लिए आगे आएं? यह बहस अनवरत चलती रहेगी।