Jharkhand news: झारखंड की शान, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपत दोनों रहे चुके हैं राज्य के गवर्नर
झारखंड से देश को मिला गौरव, पूर्व गवर्नर द्रौपदी मुर्मू और सीपी राधाकृष्णन बने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति।

Jharkhand news: नई दिल्ली, झारखंड ने देश को दो बड़े संवैधानिक पदों पर गौरव दिलाया है। वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन दोनों कभी झारखंड के गवर्नर रह चुके हैं। यह पहली बार है जब एक ही राज्य के दो पूर्व गवर्नर देश के सर्वोच्च और दूसरे सर्वोच्च पद पर हैं। दोनों ने अपने कार्यकाल में झारखंड के विकास और सामाजिक उत्थान के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। आइए, सरल शब्दों में जानें इन दोनों की उपलब्धियों और झारखंड से उनके खास रिश्ते की कहानी।
द्रौपदी मुर्मू: झारखंड की बेटी से राष्ट्रपति तक
द्रौपदी मुर्मू ने 2015 से 2021 तक झारखंड की गवर्नर के रूप में काम किया। वह राज्य की पहली महिला गवर्नर थीं। उनके कार्यकाल में आदिवासी समुदाय के कल्याण के लिए कई योजनाएं शुरू हुईं। शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला सशक्तिकरण पर उनका विशेष ध्यान रहा। ओडिशा के मयूरभंज जिले की रहने वाली मुर्मू आदिवासी समुदाय से हैं। उनकी सादगी और मेहनत ने उन्हें जन-जन का प्रिय बनाया। 2022 में वह भारत की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति बनीं। झारखंड के लोग उनकी उपलब्धि पर गर्व करते हैं। उनकी कहानी प्रेरणा देती है कि मेहनत से कोई भी ऊंचाई छू सकता है।
सीपी राधाकृष्णन, गवर्नर से उपराष्ट्रपति
सीपी राधाकृष्णन ने 2023 में झारखंड के गवर्नर के रूप में कार्यभार संभाला। वह तमिलनाडु के तिरुपुर जिले के रहने वाले हैं। उनके कार्यकाल में शिक्षा और बुनियादी ढांचे पर जोर दिया गया। राधाकृष्णन ने ग्रामीण विकास और युवाओं के लिए रोजगार योजनाओं को बढ़ावा दिया। उनकी सक्रियता और लोगों से सीधा संवाद करने की शैली ने उन्हें लोकप्रिय बनाया। 2025 में वह भारत के उपराष्ट्रपति बने। उनका अनुभव और प्रशासनिक क्षमता झारखंड के लिए फायदेमंद रही। आज वह देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर हैं।
झारखंड का गौरवशाली इतिहास
यह संयोग गर्व की बात है कि झारखंड जैसे छोटे राज्य के दो पूर्व गवर्नर आज देश के शीर्ष पदों पर हैं। द्रौपदी मुर्मू ने आदिवासी समाज को नई पहचान दी, तो राधाकृष्णन ने प्रशासनिक सुधारों से राज्य को मजबूत किया। दोनों ने अपने कार्यकाल में झारखंड की संस्कृति और विकास को बढ़ावा दिया। मुर्मू ने आदिवासी कला और परंपराओं को प्रोत्साहन दिया, जबकि राधाकृष्णन ने शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट पर काम किया।