CPEC 2.0 को लेकर चीन की बढ़ी चिंता, पाकिस्तान को लगाई फटकार

डेस्क: चीन ने पाकिस्तान के साथ चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के दूसरे चरण को मंजूरी तो दे दी है, लेकिन इसके क्रियान्वयन को लेकर उसकी चिंता और नाराजगी साफ झलक रही है। चीन ने ऐलान किया है कि वह 62 अरब डॉलर के सीपीईसी प्रोजेक्ट को लेकर आगे बढ़ेगा। हालांकि, हाल ही में बीजिंग में हुई मुलाकात के दौरान चीनी अधिकारियों ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और आर्मी चीफ असीम मुनीर से सुरक्षा, राजनीतिक अस्थिरता और प्रोजेक्ट में हो रही देरी को लेकर कड़ा एतराज जताया।
साल 2018 से ही कई परियोजनाएं अटकी हुई हैं, जिससे चीन की बौखलाहट बढ़ती जा रही है। इस बीच बलूचिस्तान में चीनी इंजीनियरों पर हमलों ने बीजिंग की चिंता और गहरी कर दी है। चीन का कहना है कि भले ही शरीफ सरकार ने नीतिगत स्थिरता लाई है, लेकिन सुरक्षा खतरे अभी भी सबसे बड़ी चुनौती बने हुए हैं।
पूर्व पीएम इमरान खान के कार्यकाल में पाकिस्तान अमेरिका के करीब चला गया था और कर्ज के दबाव के कारण सीपीईसी प्रोजेक्ट लगभग ठप पड़ गए थे। चीन इस प्रोजेक्ट को अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में दिखाता रहा है, लेकिन हकीकत में यह पाकिस्तान के भीतर ही अटका हुआ है।
क्यों अहम है CPEC?
सीपीईसी के पहले चरण के तहत चीन ने 2015 में 25 अरब डॉलर की परियोजनाएं शुरू की थीं, जिनमें ऊर्जा, सड़क और बुनियादी ढांचे का विकास शामिल था। लेकिन पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता और सुरक्षा संकट ने इनकी लागत बढ़ा दी।
चीन का असली मकसद हिंद महासागर के मलक्का जलडमरूमध्य (Malacca Strait) पर अपनी निर्भरता घटाना है। यह संकरा रास्ता भारत के अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के पास है और चीन के लिए तेल और व्यापार का प्रमुख मार्ग है। चीन को आशंका है कि अगर भारत या अमेरिका ने इसे अवरुद्ध कर दिया तो उसकी सप्लाई लाइन कट जाएगी। इसी खतरे से बचने के लिए चीन शिंजियांग से ग्वादर तक सड़क और रेलमार्ग विकसित कर रहा है।
हाल ही में चीन ने कराची से पेशावर तक रेल लाइन परियोजना के लिए फंडिंग से इनकार कर दिया, जिसके बाद पाकिस्तान ने एडीबी (एशियन डेवलपमेंट बैंक) से मदद मांगी। वहीं, बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) के लड़ाके ग्वादर में हमले तेज कर रहे हैं, जहां चीन भविष्य में नौसैनिक अड्डा बनाने की योजना बना रहा है।
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