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Intruders and conversion:बांग्लादेशी घुसपैठियों और धर्मांतरण के ख़िलाफ़ पूर्व सीएम चम्पाई सोरेन ने मोर्चा खोला

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संथाल परगना की धरती पर गरजे चम्पाई सोरेन – आदिवासियत को बचाने के लिए किसी भी हद तक जायेंगे
धर्मांतरण करने वालों और दूसरे धर्म में शादी करने वालों का आरक्षण रद्द हो: चम्पाई सोरेन
जामताड़ा। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन ने बांग्लादेशी घुसपैठियों एवं धर्मांतरण के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ने का संकल्प दुहराया है। वे खचाखच भरे जामताड़ा टाउन हॉल में सामाजिक संस्था एसेका द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि संथाल परगना के पाकुड़ एवं साहिबगंज समेत कई हिस्सों में आज आदिवासी समाज अल्पसंख्यक हो चुका है, जबकि बांग्लादेशी घुसपैठिए हमारे समाज की जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि समाज की जो बेटियाँ बाहर शादी कर रही हैं, उन्हें संविधान द्वारा मिले आरक्षण में अतिक्रमण करने का कोई अधिकार नहीं है।
धर्मांतरण करने वाले लोगों को आड़े हाथों लेते हुए पूर्व सीएम ने कहा कि जो भी व्यक्ति हमारी परंपराओं एवं रूढ़िवादी व्यवस्था ने बाहर निकल चुका है, उसे आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। नवंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले से यह तय हो चुका है कि धर्म बदलने वालों को आरक्षण से बाहर किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि झारखंड में हमारा आदिवासी समाज दोतरफा मार झेल रहा है। एक ओर बांग्लादेशी घुसपैठिये भूमिपुत्रों की जमीनें लूट रहे हैं, हमारे समाज की बेटियों से विवाह कर पिछले दरवाजे से संविधान द्वारा दिए गये अधिकारों में अतिक्रमण कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, कुछ लोग भोले-भाले आदिवासियों को ठग कर, उन्हें लालच देकर अथवा उनकी मजबूरी का फायदा उठा कर उनका धर्मांतरण कर रहे हैं। बेहतर शिक्षा का अवसर पाकर ये धर्मांतरित लोग आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर कब्जा करते जा रहे हैं।

उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि सरना आदिवासी समाज के बच्चे इस रेस में पिछड़ते जा रहे हैं। आदिवासी समाज को यह सोचना होगा कि इसमें किसका नुकसान है? जब संविधान कहता है कि धर्म परिवर्तन करने वालों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए तो फिर ऐसा क्यों हो रहा है? जो लोग हमारी संस्कृति को भूल कर एक विदेशी धर्म के पीछे भाग रहे हैं, क्या उन्हें संविधान द्वारा हमारे समाज को दिये गये अधिकारों को हड़पने का कोई हक है?
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उन्होंने संथाल परगना समेत पूरे झारखंड में आदिवासियत की लड़ाई को मुकाम तक पहुँचाने का रोडमैप साझा करते हुए कहा कि कुछ महीनों में “आदिवासी सांवता सुसार अखाड़ा” द्वारा एक महाधिवेशन बुलाया जायेगा, जिसमें 10 लाख से अधिक आदिवासी समाज के लोग शामिल होंगे। इस महाधिवेशन में झारखंड, ओडिशा, असम, बंगाल, बिहार समेत देश-विदेश के लोग जुटेंगे, तथा आदिवासी समाज के अस्तित्व समेत विभिन्न मुद्दों पर निर्णायक प्रस्ताव पारित करेंगे।
ओलचिकी लिपि की वकालत करते हुए पूर्व सीएम चम्पाई सोरेन ने इसे एक वैज्ञानिक तौर पर सफल लिपि बताया। उन्होंने आदिवासी सभ्यता, संस्कृति, कलाओं एवं भाषाओं को संरक्षित करने तथा उसके प्रति अगली पीढ़ी को जागरूक करने की आवश्यकता पर बल दिया।
इस कार्यक्रम में सिदो-कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू, एसेका के शंकर सोरेन समेत सैकड़ों की संख्या में साहित्यकार, लेखक, बुद्धिजीवी एवं हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग मौजूद थे।

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