दिन हो गए, कहां हैं जेंडर-वाइज आंकड़े? तेजस्वी यादव का चुनाव आयोग पर डेटा छिपाने का आरोप
तेजस्वी यादव ने कहा – “पहले चरण के वोटिंग को बीते तीन दिन हो चुके हैं, लेकिन चुनाव आयोग ने अब तक महिलाओं और पुरुषों की मतदान प्रतिशत रिपोर्ट जारी नहीं की।”
डेस्क:बिहार की सियासत एक बार फिर गरमा गई है। विधानसभा चुनावों के पहले चरण के मतदान के बाद, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग (ECI) पर बड़ा हमला बोलते हुए सवाल उठाया है —“दिन बीत गए, लेकिन अब तक चुनाव आयोग ने जेंडर-वाइज वोटिंग डेटा क्यों जारी नहीं किया? क्या छिपाया जा रहा है?”
तेजस्वी का यह सवाल सिर्फ आंकड़ों को लेकर नहीं, बल्कि लोकतंत्र की पारदर्शिता पर भी तीखा वार है।
तेजस्वी का आरोप: डेटा छिपा रही है ECI
तेजस्वी यादव ने पटना में संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि चुनाव आयोग द्वारा जारी किए जाने वाले हर चरण के बाद पुरुष और महिला मतदाताओं की अलग-अलग भागीदारी का विवरण अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।
उनके मुताबिक, यह आंकड़े सिर्फ नंबर नहीं होते — ये बताते हैं कि महिलाएं किस स्तर पर राजनीति में सक्रिय भागीदारी कर रही हैं, और किन क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत कम या अधिक रहा।
“ECI का काम पारदर्शिता है, गोपनीयता नहीं। जब हर बूथ का टर्नआउट प्रतिशत जारी होता है, तो जेंडर वाइज डेटा क्यों नहीं?” — तेजस्वी यादव
नाम हटाने पर भी उठाए सवाल
तेजस्वी ने यह भी आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने मतदाता सूची से लाखों नाम हटा दिए, परंतु यह स्पष्ट नहीं किया कि कितने नाम मृत्यु, स्थानांतरण या दोहरी प्रविष्टि के कारण हटाए गए।
उन्होंने कहा कि जब से ECI ने Special Intensive Revision (SIR) अभियान चलाया है, तब से कई मतदाता अपना नाम सूची में नहीं पा रहे हैं — और यह लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है।
“मेरे अपने परिवार और पार्टी के कार्यकर्ताओं के नाम भी मतदाता सूची से गायब हैं। यह सिर्फ तकनीकी गलती नहीं, बल्कि सुनियोजित कोशिश लगती है।” — तेजस्वी यादव
ECI की चुप्पी पर उठे सवाल
तेजस्वी का कहना है कि जब हर चुनाव में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने को लेकर आंकड़े दिखाए जाते हैं, तो इस बार आंकड़ों की अनुपस्थिति कई शक पैदा करती है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, अगर ECI ने जेंडर-वाइज डेटा जारी नहीं किया, तो इससे महिला मतदाताओं की सक्रियता पर आधारित राजनीतिक रणनीतियों का विश्लेषण अधूरा रह जाएगा।
चुनाव आयोग की ओर से अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। आयोग के सूत्रों के मुताबिक डेटा “कंपाइलिंग प्रक्रिया” में है, लेकिन विपक्ष इसे “डेटा हेरफेर की तैयारी” बता रहा है।
क्यों अहम है जेंडर-वाइज डेटा?
भारत के चुनावी इतिहास में महिलाओं की भूमिका लगातार बढ़ी है। बिहार में तो कई चुनावों में महिला मतदाताओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा है।
इसलिए, यह आंकड़ा सिर्फ सांख्यिकी नहीं बल्कि लोकतांत्रिक भागीदारी की गहराई को दिखाता है।
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यह बताता है कि कौन-से क्षेत्रों में महिलाएं ज्यादा जागरूक हैं।
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यह भी मापता है कि किन जिलों में सामाजिक या सांस्कृतिक कारणों से महिलाएं मतदान से वंचित रह जाती हैं।
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राजनीतिक दल इसी डेटा के आधार पर अपने महिला केंद्रित अभियानों को रणनीतिक बनाते हैं।
इसलिए, आंकड़े छिपाना या देरी से जारी करना राजनीतिक पारदर्शिता पर सीधा सवाल खड़ा करता है।
राजनीतिक हलचल और विपक्ष का दबाव
तेजस्वी यादव के बयान के बाद विपक्षी दलों ने भी आयोग से डेटा जारी करने की मांग तेज कर दी है।
कांग्रेस, वाम दल और अन्य विपक्षी पार्टियां इसे “डेटा डिले की साज़िश” बता रही हैं।
वहीं, भाजपा ने पलटवार करते हुए कहा कि तेजस्वी का आरोप “बेबुनियाद और चुनावी प्रचार” है।
राजनीतिक गलियारों में अब यह चर्चा तेज है कि क्या सच में ECI किसी दबाव में है, या यह सिर्फ विपक्ष का चुनावी शोर है।
ECI पर पारदर्शिता का दबाव
चुनाव आयोग का काम सिर्फ चुनाव कराना नहीं, बल्कि जनता के बीच विश्वसनीयता बनाए रखना भी है।
डेटा की पारदर्शिता से ही जनता को भरोसा होता है कि मतदान निष्पक्ष हुआ है।
यदि आयोग समय रहते यह आंकड़े सार्वजनिक नहीं करता, तो विपक्ष के आरोपों को और बल मिलेगा।
निष्कर्ष
तेजस्वी यादव का यह सवाल अब सिर्फ एक “राजनीतिक बयान” नहीं रह गया — यह लोकतंत्र की विश्वसनीयता और पारदर्शिता से जुड़ा मुद्दा बन चुका है।
ECI के लिए यह जरूरी है कि वह जल्द से जल्द जेंडर-वाइज मतदान आंकड़े सार्वजनिक करे, ताकि जनता का विश्वास बना रहे।



