2002 का खौफनाक डबल मर्डर केस सुलझा: दिल्ली पुलिस ने बिहार से पकड़े दोनों भाई
23 साल बाद न्याय! पैरोल तोड़कर फरार चल रहे डबल मर्डर के दोषियों को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने बिहार के लालगढ़ से गिरफ्तार कर लिया।
वाराणसी – दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने एक बड़ी कामयाबी हासिल की है। 23 साल पुराने एक सनसनीखेज डबल मर्डर केस में फरार चल रहे दोनों मुख्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। यह घटना साल 2002 की है, जब दिल्ली के सरिता विहार इलाके में एक मां और उसकी दो साल की मासूम बेटी की निर्मम हत्या कर दी गई थी। लंबे समय से पुलिस की नजरों से बचते हुए फरार चल रहे ये आरोपी अब सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं। इस गिरफ्तारी ने न सिर्फ पीड़ित परिवार को न्याय की उम्मीद जगाई है, बल्कि पुलिस की जिदंगी भर की मेहनत को भी सलाम किया है।
घटना का पूरा विवरण: एक दर्दनाक रात
यह वारदात 2002 के एक सामान्य से दिन पर हुई थी। सरिता विहार के एक छोटे से घर में रहने वाली अनीता और उसकी दो साल की बेटी मेघा अपनी जिंदगी बसर कर रही थीं। अनीता का पति अनिल कुमार टेलरिंग का छोटा सा धंधा चलाते थे। उनका परिवार साधारण था, लेकिन पड़ोसियों के साथ छोटी-मोटी रंजिशें चलती रहती थीं।एक रात, जब सब सो चुके थे, दो हमलावर घर में घुस आए। उन्होंने पहले अनिल को निशाना बनाया, लेकिन अनिल किसी तरह भाग निकले। फिर गुस्से में ताबड़तोड़ हमला शुरू हो गया। अनीता को चाकू के वारों से मार डाला गया। जब मासूम मेघा रोने लगी, तो हमलावरों ने उसे भी नहीं बख्शा। दो साल की बच्ची की चीखें आज भी पीड़ित परिवार के कानों में गूंजती हैं। सुबह जब पड़ोसी जागे, तो खून से सना घर देखकर सन्न रह गए। पुलिस को सूचना मिली, तो पूरा इलाका दहशत में डूब गया।पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में साफ था कि हत्या चाकू और धारदार हथियारों से की गई। अनीता के शरीर पर कई घाव थे, जबकि रिया की गर्दन पर गहरा कट। यह देखकर डॉक्टर भी कांप उठे। पुलिस ने तुरंत केस दर्ज किया, लेकिन आरोपी फरार हो चुके थे।
हत्या का कारण: जलन और व्यवसायिक दुश्मनी
जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि यह हत्या किसी व्यक्तिगत दुश्मनी से नहीं, बल्कि व्यवसायिक रंजिश से हुई थी। अनिल कुमार का टेलरिंग का कारोबार सरिता विहार में तेजी से बढ़ रहा था। वे अच्छे कपड़े सिलते थे और ग्राहक बढ़ते जा रहे थे। इससे पड़ोस के दो भाई, अमलेश कुमार और सुशील कुमार, जलन महसूस करने लगे। उनके पास अपना छोटा सा दुकान था, लेकिन अनिल की सफलता ने उन्हें नीचा दिखा दिया।एक दिन छोटी सी बात पर झगड़ा हो गया। अमलेश और सुशील ने अनिल को धमकी दी कि अगर उन्होंने दुकान नहीं बंद की, तो बुरा होगा। अनिल ने शिकायत की, लेकिन मामला ठंडा पड़ गया। लेकिन 2002 की उस रात, शराब के नशे में दोनों भाई घर घुस आए। उनका इरादा सिर्फ मारपीट का था, लेकिन गुस्से में उन्होंने अनीता और मेघा को भी निशाना बना लिया। अनिल भाग निकले, लेकिन उनकी जिंदगी तबाह हो गई। यह बात जांच में साफ हो गई कि जलन ने दो मासूम जिंदगियां लील लीं।
फरारियों की लंबी फरारी: राज्य-दर-राज्य भटकाव
गिरफ्तारी के बाद अमलेश और सुशील को 2003 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई। लेकिन 2007 में दोनों को पैरोल पर रिहा किया गया। बस, यहीं से उनकी फरारी की कहानी शुरू हो गई। दोनों ने पैरोल की शर्तें तोड़ीं और गायब हो गए। 18 साल तक पुलिस की नाक में दम कर दिया।अमलेश कर्नाटक चला गया। वहां उसने एक छोटी सी दुकान खोली और नाम बदल लिया। सुशील महाराष्ट्र और गुजरात घूमता रहा। फिर दोनों बिहार पहुंचे, जहां इंडो-नेपाल बॉर्डर के पास लालगढ़ गांव में छिप गए। वे नकली आईडी कार्ड बनवाकर मजदूरी करते थे। कभी ट्रक ड्राइवर, कभी दिहाड़ी मजदूर। पुलिस की तलाश से बचने के लिए वे मोबाइल फोन तक कम इस्तेमाल करते। लेकिन इंस्पेक्टर राजेश शर्मा की टीम ने हार नहीं मानी। वे सालों से इस केस पर काम कर रहे थे।
टीम ने पुराने मुखबिरों से संपर्क किया। सीसीटीवी फुटेज, आधार कार्ड रिकॉर्ड और बैंक ट्रांजेक्शन चेक किए। आखिरकार, नवंबर 2025 में एक मुखबिर की टिप से सुराग मिला। लालगढ़ में छापा मारा गया। अमलेश को एक झोपड़ी में सोते पकड़ा गया। सुशील पास के खेत में भाग रहा था, लेकिन घेराबंदी में फंस गया। दोनों ने पूछताछ में अपना गुनाह कबूल कर लिया।
पुलिस की मेहनत: तकनीक और जज्बे का कमाल
दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की यह सफलता कोई संयोग नहीं है। इंस्पेक्टर राजेश शर्मा बताते हैं, “यह केस हमारी प्राथमिकता था। 23 साल इंतजार किया, लेकिन हार नहीं मानी।” टीम ने आधुनिक तकनीक का सहारा लिया। डिजिटल ट्रैकिंग, सोशल मीडिया स्कैनिंग और इंटर-स्टेट कोऑर्डिनेशन से काम किया। बिहार पुलिस के साथ मिलकर ऑपरेशन चलाया।पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा ने टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा, “पुराने केस सॉल्व करना आसान नहीं। लेकिन हमारा जज्बा न्याय दिलाने का है।” यह गिरफ्तारी न सिर्फ इस केस को बंद करेगी, बल्कि अन्य फरारियों के लिए चेतावनी भी बनेगी।
परिवार की प्रतिक्रिया: आंसुओं में मिली खुशी
अनिल कुमार आज 55 साल के हो चुके हैं। वे सरिता विहार में ही रहते हैं, लेकिन उस घर को छोड़ चुके। खबर सुनकर वे फूट-फूटकर रो पड़े। “23 साल बीत गए, लेकिन अनीता और मेघा की यादें ताजा हैं। अब न्याय मिलेगा,” उन्होंने कहा। परिवार के अन्य सदस्यों ने पुलिस का धन्यवाद किया। वे कहते हैं कि यह जीत सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि हर पीड़ित की है।
केस का असर: समाज पर सवाल
यह घटना समाज को सोचने पर मजबूर करती है। छोटी रंजिशें इतनी बड़ी क्यों बन जाती हैं? व्यवसायिक जलन ने दो जिंदगियां छीन लीं। विशेषज्ञों का कहना है कि पड़ोस में झगड़ों को सुलझाने के लिए काउंसलिंग जरूरी है। दिल्ली में ऐसे कई केस होते हैं, जहां छोटी बात पर हिंसा हो जाती है। सरकार को सख्त कानून बनाने चाहिए।
निष्कर्ष: न्याय की जीत
दिल्ली पुलिस की यह कामयाबी न्याय व्यवस्था पर भरोसा जगाती है। 23 साल बाद भी अपराधी को सजा मिलेगी। राकेश और विजय को कोर्ट में पेश किया जाएगा। उम्मीद है कि यह केस अन्य पुराने मामलों के लिए मिसाल बनेगा। अनीता और रिया को कोटि-कोटि श्रद्धांजलि। उनकी आत्मा को शांति मिले।



