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Karur Rally: भीड़ का घनत्व 7 था, जो मौत का बुलावा है, कुंभ मेला संभालने वाले कमिश्नर ने बताईं 3 बड़ी गलतियां

करूर भगदड़, भीड़ प्रबंधन विशेषज्ञ ने बताया, 7 लोग प्रति मीटर थे खतरे का निशान, टाली जा सकती थी आपदा।

Karur Rally: तमिलनाडु के करूर में हुई दर्दनाक भगदड़ की घटना के बाद, देश में भीड़ प्रबंधन (Crowd Management) को लेकर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। इस मुद्दे पर, कुंभ मेला जैसे विशाल आयोजनों का सफलतापूर्वक प्रबंधन कर चुके, नागपुर के पुलिस कमिश्नर और भीड़ प्रबंधन विशेषज्ञ रविंदर सिंघल ने अपनी विशेषज्ञ राय दी है। उन्होंने बताया कि करूर में भीड़ का घनत्व खतरनाक स्तर पर था और आयोजकों द्वारा की गई कुछ बड़ी गलतियों के कारण यह हादसा हुआ, जिसे आसानी से टाला जा सकता था।

4 की जगह 7 लोग प्रति मीटर, यह खतरे का निशान था’

रविंदर सिंघल ने बताया कि भीड़ प्रबंधन का एक मानक नियम है। प्रति वर्ग मीटर में चार लोगों का घनत्व सुरक्षित माना जाता है। पांच लोग जोखिम भरा होता है, और छह से ऊपर की संख्या को बेहद खतरनाक माना जाता है, जिसमें मौतें या गंभीर चोटें लग सकती हैं। उन्होंने कहा, जो फुटेज मैंने देखी, उसके अनुसार करूर में यह घनत्व 7 था, जो खतरे के निशान से कहीं ऊपर था। यह स्थिति मौत को बुलावा देने जैसी थी।

Karur Rally: ये 3 बड़ी गलतियां बनीं हादसे का कारण

सिंघल के अनुसार, इस आपदा को टाला जा सकता था अगर कुछ बुनियादी प्रोटोकॉल का पालन किया गया होता। उन्होंने तीन बड़ी गलतियों की ओर इशारा किया।

नेता की गलत पोजिशनिंग: सबसे बड़ी गलतियों में से एक थी टीवीके अध्यक्ष विजय को भीड़ के ठीक बीच में रखना। ऐसे आयोजनों में मंच के आगे और पीछे एक सुरक्षित क्षेत्र (Secure Zone) बनाना अनिवार्य होता है, लेकिन यहां ऐसा नहीं किया गया।

भीड़ का विभाजन न करना: पूरी भीड़ को एक बड़े समूह के रूप में छोड़ दिया गया था। नियम के अनुसार, भीड़ को बैरिकेडिंग करके छोटे-छोटे हिस्सों (Compartments) में बांटा जाना चाहिए। ऐसा करने से, किसी एक हिस्से में अफरा-तफरी होने पर वह वहीं तक सीमित रहती है और पूरी भीड़ एक-दूसरे से नहीं टकराती।

आपदा प्रबंधन योजना का अभाव: कार्यक्रम स्थल पर एम्बुलेंस और पुलिस के आने-जाने के लिए कोई स्पष्ट रास्ता नहीं था। एक प्रभावी आपदा प्रबंधन योजना की कमी साफ दिखाई दे रही थी।

टेक्नोलॉजी से कैसे रोकी जा सकती है भगदड़?

रविंदर सिंघल ने बताया कि अब भीड़ को नियंत्रित करने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने नागपुर में इस्तेमाल होने वाले सिस्टम का उदाहरण दिया। वहां एआई-आधारित सीसीटीवी कैमरों का उपयोग किया जाता है जो ‘क्राउड-डेंसिटी एनालिटिक्स’ से लैस होते हैं। यह सिस्टम एक कलर-कोडेड मॉडल पर काम करता है, हरा मतलब सुरक्षित, नारंगी मतलब घनत्व बढ़ रहा है, और लाल मतलब खतरा। लाल सिग्नल मिलते ही कंट्रोल रूम तुरंत भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाता है। इसके अलावा, ड्रोन और एंट्री-एग्जिट पॉइंट पर लगे सेंसर से किसी भी समय परिसर के अंदर मौजूद लोगों की सटीक संख्या का पता चल जाता है।

कुंभ मेले से सीखा सबक

अपने अनुभव को साझा करते हुए, सिंघल ने 2003 के कुंभ मेले का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि 1954 की कुंभ भगदड़ का अध्ययन करने पर उन्होंने पाया कि लंबे समय तक इंतजार करना भगदड़ के मुख्य कारणों में से एक था। इससे सबक लेते हुए, उन्होंने 2003 के मेले में जगह-जगह पर धार्मिक अनुष्ठानों की लाइव फीड के लिए स्क्रीन लगाईं और भक्ति संगीत बजवाया, ताकि लोगों का ध्यान बंटा रहे और वे अधीर न हों। उन्होंने कहा कि यह एक सरल उपाय था, लेकिन यह बहुत कारगर साबित हुआ।

Sanjna Gupta
Author: Sanjna Gupta

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