‘लैंड फॉर जॉब’ केस: लालू प्रसाद यादव को राहत या मुश्किलें? अगली सुनवाई 25 सितंबर को

नई दिल्ली: राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सुप्रीमो और पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव का नाम एक बार फिर चर्चा में है। मामला है कुख्यात ‘लैंड फॉर जॉब’ घोटाले का, जिसमें आरोप है कि रेलवे में नौकरियों के बदले जमीन ली गई थी। इस केस की जांच CBI कर रही है।
हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान लालू यादव के वकील ने दलील दी कि जब लालू रेल मंत्री थे, उस समय उनके खिलाफ FIR दर्ज करने के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act, 1988) के तहत मंजूरी जरूरी थी। उनका कहना है कि यह मंजूरी नहीं ली गई, इसलिए FIR और उसके आधार पर शुरू हुई जांच दोनों ही कानूनी रूप से सही नहीं हैं।
CBI के पास मजबूत आधार नहीं: लालू की याचिका
याचिका में यह भी कहा गया कि CBI ने जिस FIR पर केस शुरू किया है, उसमें कोई ठोस सबूत नहीं हैं। इसी वजह से लालू ने मांग की है कि FIR को रद्द किया जाए और जब तक हाईकोर्ट इस पर फैसला न दे, तब तक निचली अदालत में आरोप तय करने की प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए।
इससे पहले लालू प्रसाद ने हाईकोर्ट में अपनी याचिका पर जल्दी सुनवाई की गुहार लगाई थी, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि वह हाईकोर्ट के आदेश में दखल नहीं देगा।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 25 सितंबर को दिल्ली हाईकोर्ट में होगी। इसमें यह तय किया जाएगा कि FIR दर्ज करने की प्रक्रिया सही थी या नहीं। माना जा रहा है कि इस सुनवाई का असर न सिर्फ लालू यादव की कानूनी लड़ाई बल्कि उनके राजनीतिक भविष्य और RJD की साख पर भी पड़ेगा।
क्या है ‘लैंड फॉर जॉब’ केस?
यह घोटाला भारत के चर्चित भ्रष्टाचार मामलों में गिना जाता है। आरोप है कि रेल मंत्री के कार्यकाल में लालू प्रसाद यादव ने कुछ लोगों को रेलवे की नौकरी दिलाने के बदले उनसे जमीन और संपत्ति ली। इस मामले की जांच CBI कर रही है। लालू की तरफ से तर्क दिया गया है कि उनके मंत्री रहने के दौरान FIR दर्ज करने से पहले संबंधित प्राधिकरण से अनुमति लेना अनिवार्य था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
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