
चुनाव आयोग ने शनिवार को विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए कहा कि कई राजनीतिक दलों और उनके बूथ लेवल एजेंट (BLA) समय रहते मतदाता सूचियों की जांच करने में नाकाम रहे। आयोग का कहना है कि जिन त्रुटियों पर अब शोर मचाया जा रहा है, उन्हें पहले ही दावों और आपत्तियों की प्रक्रिया के दौरान उठाया जाना चाहिए था। अगर ऐसा होता तो संबंधित एसडीएम और ईआरओ तुरंत सुधार कर सकते थे।
आयोग ने स्पष्ट किया कि मतदाता सूची तैयार करने की पूरी प्रक्रिया में राजनीतिक दल शामिल रहते हैं। ड्राफ्ट वोटर लिस्ट की हार्ड कॉपी और डिजिटल कॉपी सभी पार्टियों के साथ साझा की जाती है और आयोग की वेबसाइट पर भी उपलब्ध रहती है। इसके बाद दावे और आपत्तियां दर्ज करने के लिए एक माह का समय दिया जाता है।
बिहार की मतदाता सूची पर विवाद
बिहार में चल रहे विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) को लेकर विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए चुनाव आयोग ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों को 20 जुलाई 2025 से उन मतदाताओं की सूची उपलब्ध करा दी गई थी जिनके नाम हटाए जाने थे। इनमें मृतक मतदाता, स्थायी रूप से अन्यत्र बस चुके लोग और डुप्लीकेट प्रविष्टियां शामिल थीं।
आयोग ने दो-स्तरीय अपील प्रक्रिया की भी व्यवस्था बताई और कहा कि अंतिम सूची भी हर राजनीतिक दल के साथ साझा की जाती है। इसके बावजूद कुछ दलों ने समय पर आपत्तियां दर्ज नहीं कीं।
“लोकतंत्र को मजबूत करना है उद्देश्य”
चुनाव आयोग ने कहा, “हम अब भी राजनीतिक दलों और मतदाताओं से सूची की जांच करने का आग्रह करते हैं। आयोग का लक्ष्य हमेशा साफ-सुथरी मतदाता सूची सुनिश्चित करना और लोकतंत्र को और मजबूत बनाना है।”
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