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पाकिस्तान ने कराची में ढहाई 200 एकड़ में फैली अफगान बस्ती

डेस्क: अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच बढ़ते सीमा तनाव के बीच पाकिस्तान सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। रविवार को कराची के मलिर इलाके में करीब 200 एकड़ जमीन पर फैली अफगान शरणार्थियों की बस्ती को पूरी तरह खाली करा दिया गया। यह बस्ती वर्ष 1983 से बसी हुई थी, जहां लगभग 18 से 20 हजार अफगान नागरिक रह रहे थे।

फेडरल सरकार के आदेश पर सिंध पुलिस, राजस्व विभाग और मलिर डेवलपमेंट अथॉरिटी ने संयुक्त अभियान चलाया और करीब 3,000 झोपड़ियों व छोटे घरों को ध्वस्त कर दिया। स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, इस कार्रवाई के दौरान किसी बड़े विरोध की खबर नहीं मिली, लेकिन कई परिवार बेघर हो गए।

पूरे सिंध में अभियान की तैयारी

स्थानीय अधिकारियों ने बताया कि सिंध सरकार अब पूरे प्रांत में ऐसे अभियान चलाने जा रही है ताकि अवैध रूप से रह रहे अफगान नागरिकों की पहचान की जा सके। कराची, हैदराबाद और सुक्कुर समेत कई जिलों में छापेमारी और सत्यापन अभियान जारी है।

यह कार्रवाई ऐसे समय में हुई है जब पाकिस्तान-अफगान सीमा (डूरंड लाइन) पर तनाव अपने चरम पर है। हाल ही में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने सख्त लहजे में कहा था कि “अब अफगानों को अपने देश लौट जाना चाहिए, पाकिस्तान अब पुराने रिश्ते नहीं निभा सकता।”

उन्होंने यह भी कहा कि सीमा पार से बढ़ते आतंकी हमलों के कारण पाकिस्तान “अब पुराने दौर की दोस्ती खत्म कर चुका है।”

शनिवार को 48 घंटे के युद्धविराम के बाद पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के पक्तिका प्रांत में हवाई हमले किए, जिनमें कम से कम 10 नागरिक, जिनमें तीन क्रिकेटर भी शामिल थे, मारे गए। इसके विरोध में अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने पाकिस्तान और श्रीलंका के साथ होने वाली T20 त्रिकोणीय सीरीज से खुद को अलग कर लिया।

बढ़ते तनाव को देखते हुए कतर और तुर्की की मध्यस्थता में हुई वार्ता के बाद दोनों देशों ने फिर से संघर्ष विराम बहाल करने पर सहमति जताई। कतर के विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की कि दोनों पक्षों ने “स्थायी शांति और संवाद जारी रखने” का वादा किया है।

पाकिस्तान का आरोप है कि अफगान तालिबान सरकार, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) जैसे आतंकी संगठनों को शरण दे रही है। वहीं, काबुल का कहना है कि पाकिस्तान अपनी आंतरिक सुरक्षा विफलताओं के लिए दूसरों को दोष नहीं दे सकता।
विश्लेषकों का मानना है कि अफगान शरणार्थियों को निकालने की यह नीति अब सिर्फ प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और सुरक्षा रणनीति का हिस्सा बन चुकी है।

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