धार्मिक

Pinnacle of Devotion:चैत्र पर्व पर आस्था का अनोखा संगम

  • भक्ति की पराकाष्ठा: सरायकेला के भुरकुली गांव में चैत्र पर्व पर आस्था का अनोखा संगम
सरायकेला ।सरायकेला प्रखंड स्थित भुरकुली गांव में पांच दिवसीय चैत्र पर्व उत्सव भक्तिभाव और पारंपरिक धार्मिक अनुष्ठानों के साथ संपन्न हुआ। इस दौरान श्रद्धालुओं की आस्था का ऐसा अद्भुत दृश्य सामने आया जिसने हर किसी को चौंका दिया—शिव भक्तों ने मन्नत पूरी होने पर पीठ की चमड़ी में लोहे का हुक छेदवाकर न केवल हवा में झूलते हुए अग्निपथ पार किया, बल्कि बैलगाड़ी तक खींची।
सरायकेला जिले के गोविंदपुर पंचायत अंतर्गत भुरकुली गांव में हर वर्ष चैत्र संक्रांति के अवसर पर आयोजित होने वाला चैत्र पर्व इस बार भी परंपरा, आस्था और अंधश्रद्धा के विचित्र संगम का गवाह बना। गुरुवार को घटपाट पूजा के साथ प्रारंभ हुए इस उत्सव का समापन सोमवार को धार्मिक अनुष्ठानों और छऊ नृत्य के भव्य आयोजन के साथ हुआ।

रविवार को पाट भोक्ता और चारह भोक्ता उपवास व्रत के साथ विभिन्न घट पूजाएं और छऊ नृत्य आयोजित किया गया, जिसमें सैकड़ों की संख्या में स्थानीय और दूरदराज से आए श्रद्धालुओं ने भाग लिया। सोमवार को मासांत के दिन आयोजन अपने चरम पर था, जब मन्नत पूरी होने की खुशी में शिवभक्तों ने अपनी पीठ की चमड़ी में लोहे का हुक छेदवाकर हवा में झूलते हुए बैलगाड़ी खींची। इनमें से एक भक्त ने तो एक साथ पांच बैलगाड़ियों को खींच कर सभी को हैरान कर दिया।
इस आयोजन के दौरान करीब दो दर्जन भक्तों ने जलते अंगारों पर नृत्य किया, जबकि कई भक्त कांटों की सेज पर विश्राम करते दिखे। कुछ ने लकड़ी के पटरे में गड़े नुकीले कांटों पर लेटकर शिव को अर्पित अपनी मनौती पूरी की। शोभायात्रा, मोड़ा पाट, चलंती गाजाडांग, रजनी फुड़ा, जिल्हा वाण और अग्नि पाट जैसे अनुष्ठान भी इस पर्व का हिस्सा रहे।
सबसे रोमांचक दृश्य रहा ‘चलंती गाजाडांग’, जिसमें एक भक्त लोहे के हुक से बंधकर रथ पर झूलते हुए हवा में गोते लगाते नजर आए। वहीं ‘मोड़ा पाट’ में एक भक्त कांटेदार पटरे पर लेटकर डोकर मंदिर तक लाया गया।
पूजन के बाद इन भक्तों की पीठ से हुक निकाले जाते हैं और सिंदूर भरकर घावों को पूजा का हिस्सा बना दिया जाता है। न कोई दवा, न डॉक्टर—भक्तों के अनुसार, यह आस्था ही है जो उनके घावों को स्वयं भर देती है।
पर्व के समापन पर देवी को प्रसन्न करने के लिए सैकड़ों बकरों की बलि दी गई। इसके पश्चात पाटुआ भक्त महीने भर गांव-गांव घूमकर पाटुआ नृत्य व गीतों के माध्यम से अपनी भक्ति अर्पित करते हैं।
भुरकुली का चैत्र पर्व आस्था, परंपरा और आत्मबल का जीवंत उदाहरण है—जहां भक्ति का अद्भुत नजारा देखने हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं।

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