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युवाओं में आत्महत्या: “सक्सेस का डर” फेलियर से ज्यादा मार रहा है

रात 2 बजे, रोशनी बंद, फोन की ब्लू लाइट चेहरे पर। “अगर टॉप नहीं किया तो?” – ये सवाल नींद चुरा रहा है। पेरेंट्स का सपना, दोस्तों का कॉम्पिटिशन, इंस्टा की परफेक्शन। और एक युवा चुपके से सोचता है – “जीने का कोई फायदा नहीं।”

 डेस्क: अब ज़रा दिमाग के अंदर झांकिए – मनोविज्ञान कहता है कि “फेलियर का डर” नहीं, “सक्सेस न कर पाने का डर” अब सबसे बड़ा किलर बन गया है। ये “परफेक्शनिज्म पॉइजन” है – जो धीरे-धीरे जहर घोलता है। NCRB 2024: हर 40 सेकंड में एक युवा आत्महत्या की कोशिश करता है। क्या आपका बच्चा, दोस्त या आप खुद इसी “अदृश्य जाल” में फंसे हैं?

“सक्सेस प्रेशर” का मनोवैज्ञानिक जाल – जो बाहर चमकता है, अंदर तोड़ता है

आज का युवा “फेल होना” नहीं डरता। वो डरता है – “क्या होगा अगर मैं बेस्ट नहीं बना?” पेरेंट्स: “आईआईटी या कुछ नहीं।” दोस्त: “मेरा पैकेज 20 LPA, तेरा?

ये 4 “मेंटल ट्रैप” जो आत्महत्या की राह बनाते हैं:

  • “कंडीशनल सेल्फ-वर्थ” → “मैं तभी वैल्यू हूं अगर टॉप करूं”
  • “सोशल कॉम्पैरिजन लूप” → डोपामाइन क्रैश हर स्क्रॉल पर
  • “फ्यूचर कैटास्ट्रोफाइजिंग” → “अगर नहीं हुआ तो जिंदगी बर्बाद”
  • “इमोशनल आइसोलेशन” → “कमजोर लगूंगा” इसलिए मदद नहीं मांगता

सोचिए: अगर आपका बेटा 90% लाए और आप बोले “10% कहां गए?” उसके दिमाग में मैसेज: “मैं काफी नहीं हूं।”

वो “खामोश चीख” जो कोई नहीं सुनता – आरव की आखिरी नाइट

आरव, 19 साल, JEE क्रैक करने की तैयारी। रैंक 5000 आई। पापा बोले: “शर्मा जी का बेटा 300 में है।” रात 3 बजे छत पर खड़ा हुआ। आखिरी मैसेज दोस्त को: “मैं थक गया। सक्सेस का बोझ उठा नहीं पा रहा।”

मनोवैज्ञानिक एनालिसिस: आरव का एमिग्डाला हाइजैक हो गया था – स्ट्रेस हॉर्मोन कॉर्टिसोल 300% ऊपर। प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (डिसीजन मेकिंग) शटडाउन। रिजल्ट: एक पल का “इंपल्स” = जिंदगी खत्म।

आपका सबकॉन्शियस अभी चेतावनी दे रहा है: “क्या मैं भी किसी को ये बोझ दे रहा हूं?”

आत्महत्या के 5 “रेड अलर्ट” सिग्नल (जो 80% केस में दिखते हैं):

  • नींद का गायब होना → रात 3-4 बजे तक जागना
  • अचानक चुप हो जाना → पहले बातूनी, अब “आई एम फाइन”
  • “सब बेकार है” वाले थॉट्स → बार-बार
  • कीमती चीजें गिफ्ट करना → अलविदा कहने का तरीका
  • खुद को हानि पहुंचाने की बातें → “काश मैं न होता”

“सक्सेस” नहीं, “सफिसिएंसी” सिखाएं – यही असली बचाव है

WHO 2025: भारत में 15-29 साल के युवाओं में आत्महत्या दूसरा सबसे बड़ा किलर। लेकिन 90% केस प्रिवेंटेबल हैं – अगर समय पर बात हो।

आज से शुरू करें ये 3 “न्यूरो-हीलिंग” बदलाव:

  1. “परफेक्ट” की जगह “प्रोग्रेस” सेलिब्रेट करें → 1% बेहतर = विन
  2. “फेलियर = लर्निंग” का कल्चर बनाएं → पेरेंट्स पहले खुद माने
  3. “हेल्प मांगना = स्ट्रॉन्ग” का मैसेज दें → थेरेपी को नॉर्मलाइज करें

याद रखें: एक “आई एम प्राउड ऑफ यू” – बिना कंडीशन – जिंदगी बचा सकता है।

निष्कर्ष

आज रात सोने से पहले अपने बच्चे, दोस्त या खुद से पूछिए: “तू काफी है – जैसा है, वैसा।” कल सुबह एक मैसेज भेजें: “तुझसे बात करनी है – बिना जजमेंट के।” क्योंकि सक्सेस की रेस में जिंदगी हारना सबसे बड़ा फेलियर है।

FAQ

Q1: आत्महत्या की बात करे तो क्या करें? A: तुरंत सुनें, जज न करें। हेल्पलाइन: 9889005360 (iCall) या 104 (Delhi)

Q2: पेरेंट्स को कैसे समझाएं? A: छोटा वाक्य: “मुझे सपोर्ट चाहिए, रैंक नहीं।”

Q3: फ्री हेल्प कहां मिलेगी? A: NIMHANS (Bangalore), Apna bharat Foundation (24×7) -+91-9889005360

PRAGATI DIXIT
Author: PRAGATI DIXIT

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