
Bihar News: बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 नजदीक आते ही स्वास्थ्य सेवाओं का मुद्दा जोर पकड़ रहा है। खासकर मिथिलांचल क्षेत्र में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की स्थापना को लेकर दरभंगा और सहरसा जिले आमने-सामने हैं। दोनों जिले बिहार का दूसरा एम्स अपने क्षेत्र में लाने की कोशिश में जुटे हैं। इस मुद्दे ने न केवल स्थानीय लोगों की भावनाओं को छुआ है, बल्कि यह बिहार की राजनीति में भी बड़ा मुद्दा बन गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2024 में दरभंगा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मिलकर एम्स की आधारशिला रखी थी।
सहरसा की मांग और कोसी क्षेत्र का गुस्सा
कोसी क्षेत्र के लोग, खासकर सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, कटिहार, खगड़िया, अररिया और किशनगंज के निवासी, अपने इलाके में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की स्थापना की पुरजोर मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि हर साल कोसी नदी की बाढ़ से इस क्षेत्र में भारी तबाही होती है, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं पर गहरा असर पड़ता है। इसी कारण सहरसा में एम्स की आवश्यकता को वे जरूरी मानते हैं।
इस मांग को लेकर एम्स निर्माण संघर्ष समिति, कोसी मंडल सहरसा लगातार सक्रिय है। समिति द्वारा जनजागरण रैलियां, धरने और प्रदर्शन आयोजित किए जा चुके हैं। समिति के अध्यक्ष बिनोद कुमार झा और संरक्षक प्रवीण आनंद के नेतृत्व में 51 सदस्यों की एक कार्यकारिणी समिति भी बनाई गई है, जो इस मुद्दे को संगठित रूप से आगे बढ़ा रही है।
दरभंगा में जमीन विवाद और कोर्ट का रुख
दरभंगा में AIIMS के लिए चुनी गई जमीन को लेकर विवाद बढ़ गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट में मई 2023 में कहा गया था कि दरभंगा का एकमा शोभन बाईपास वाला स्थान एम्स के लिए उपयुक्त नहीं है। मिट्टी की खराब गुणवत्ता और जल-जमाव की समस्या की वजह से परियोजना लागत बढ़ सकती है। लेकिन उसी निरीक्षण दल ने जुलाई 2024 में इस स्थान को अनुकूल बताया, जिसके बाद शिलान्यास हुआ। इस बदलाव पर सवाल उठ रहे हैं। सहरसा के लोगों ने इस मामले को पटना हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी उठाया है।
क्या है सहरसा का दावा?
सहरसा जिला प्रशासन ने 2017 में 217.74 एकड़ जमीन AIIMS के लिए चिह्नित की थी। 20 सांसदों ने भी तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री से सहरसा में एम्स की मांग की थी। कोसी विकास संघर्ष मोर्चा का कहना है कि दरभंगा की जमीन नदी के पास होने से अनुपयुक्त है, जबकि सहरसा में कोई ऐसी समस्या नहीं ह।