धार्मिक

झारखंड के चांडिल में चावल धुआ के साथ शुरू हुआ टुसू पर्व, ऐसी है तैयारी

चांडिल-चावल धुआ के साथ टुसू पर्व शुरू हो गया. सोमवार को वाउड़ी के दिन लकड़ी (काठ) की ढेंकी में चावल को कूटकर चावल की गुड़ी से रात को गुड़-पीठा बनाया जाएगा और मंगलवार को मकर संक्रांति पर क्षेत्र के विभिन्न जलाशयों में स्नान करके लोग नये वस्त्र धारण करते हैं और गुड़-पीठा खाते हैं. गुड़-पीठा के बिना टुसू का त्योहार अधूरा माना जाता है. (चावल को पानी में धोने की परंपरा को चावल धुआ कहा जाता है.)

मकर संक्रांति (14 जनवरी) के दिन झारखंड के सरायकेला खरसावां जिले के चांडिल अनुमंडल के विभिन्न क्षेत्रों में टुसू पर्व मनाया जाता है. ग्रामीण महिलाए हाथ में टुसू लेकर नदी और तालाबों में मकर स्नान करने जाती हैं. गांवों में मकर संक्रांति से एक माह पहले अगहन संक्रांति से ही टुसू पर्व की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. करीब एक माह पहले पौष माह से ही टुसू मोनी की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा की जाती है. पूरे एक माह टुसू गीत राढ़-बांग्ला भाषा में गाये जाते हैं. टुसू प्रतिमाओं को विसर्जन के लिए नदी में ले जाते समय टुसूमोनी की याद में महिलाएं ढोल और मांदर की ताल पर थिरकती हैं. ये गीत मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बोली जाने वाली बांग्ला भाषा में होती है.

मकर पर्व के मौके पर सभी घरों में गुड़-पीठा बनाया जाता है. गुड़-पीठा के बगैर टुसू का त्योहार मानो अधूरा रह जाता है. इसके साथ मांस-पीठा, चकली-पीठा, छिलका-पीठा, मूढ़ी लड्डू, चूड़ा लड्डू और तिल के लड्डू जैसे खास व्यंजन बनाते हैं. बंगला में एक टुसू गीत भी है, आसछें मकर दो दिन सबुर कर, तुई मांस पीठार जोगाड़ कर.

चांडिल अनुमंडल के हाट-बाजारों में मकर संक्रांति मेला और टुसू पर्व को लेकर बाजारों में काफी भीड़ उमड़ रही है. ग्रामीणों ने गुड़-पीठा बनाने की सामग्री, बांस का सूप, डाली, मिट्टी के बर्तन, गुड़, तेल और नए वस्त्र, जूते-चप्पल आदि की खरीददारी की. इस क्षेत्र में इसे सबसे बड़ा पर्व माना जाता है. मकर और टुसू पर्व को लेकर महीनेभर पहले से ही ग्रामीण घर-आंगन की सफाई कार्य में जुट जाते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि पिछले चार पांच वर्षों से चौड़लनुमा टुसू की बिक्री घट रही है. पहले हाट-बाजार और गांव-घर में टुसू गीत गाए जाते थे. अब इसमें भी कमी देखी जा रही है.

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