बिहार: SIR पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, SC ने कहा निर्णय पूरे देश में होगा शामिल

बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। इस प्रक्रिया में वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने के लिए आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में मान्यता दी गई है। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि इससे कई लोगों के नाम कट सकते हैं और वे अपने मतदान के अधिकार से वंचित हो जाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को हुई सुनवाई में याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कहा कि चुनाव आयोग अपने बनाए नियमों और कानूनों की अनदेखी कर रहा है। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि यदि 1 अक्टूबर को प्रकाशित होने वाली मतदाता सूची बाद में कोर्ट खारिज कर देती है, तो चुनाव के समय गंभीर समस्या खड़ी हो जाएगी।
वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायणन ने यह भी बताया कि यह प्रक्रिया सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है, बल्कि चुनाव आयोग इसे अन्य राज्यों में भी लागू कर रहा है। इसलिए यदि सुप्रीम कोर्ट इसे असंवैधानिक मानता है, तो इसे पूरे देश में रोका जाना चाहिए।
वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि कानून के अनुसार नामांकन की आखिरी तारीख तक वोटर लिस्ट में नाम जोड़े जा सकते हैं, लेकिन मौजूदा प्रक्रिया से मतदाताओं को गैरकानूनी रूप से उनके अधिकार से वंचित किया जा रहा है। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी मामले की जल्द सुनवाई की मांग की।
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने चुनाव आयोग के वकील से मौजूदा स्थिति के बारे में पूछा और कहा कि यह देखना बेहतर होगा कि वास्तव में कितने लोग वोटर लिस्ट से बाहर रह गए हैं।
साथ ही कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले में दिया जाने वाला निर्णय केवल बिहार तक सीमित नहीं होगा, बल्कि पूरे देश पर लागू होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को निर्देश दिया है कि वे अपने-अपने तर्कों का संक्षिप्त लिखित नोट तैयार कर पेश करें।
इस मामले की अगली सुनवाई 7 अक्टूबर को होगी, जिसमें कोर्ट यह तय करेगा कि आधार कार्ड को पहचान पत्र मानकर वोटर लिस्ट में नाम जोड़ना संवैधानिक है या नहीं।