एच-1बी वीजा पर ट्रंप का बड़ा फैसला, कंपनियों को चुकानी होगी 1 लाख डॉलर फीस

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एच-1बी वीजा को लेकर बड़ा ऐलान किया। अब इस वीजा के लिए आवेदन करने वाली कंपनियों को हर साल 1 लाख डॉलर (करीब 83-88 लाख रुपये) की फीस चुकानी होगी। यह नियम लागू होने के बाद सबसे ज्यादा असर भारतीय आईटी और टेक कंपनियों पर पड़ सकता है, जो एच-1बी वीजा के जरिए हजारों कर्मचारियों को अमेरिका भेजती हैं।
क्यों लिया गया यह फैसला?
व्हाइट हाउस के स्टाफ सेक्रेटरी विल शार्फ के मुताबिक, एच-1बी वीजा प्रोग्राम का मकसद केवल ऐसे विदेशी पेशेवरों को लाना है जिनके स्किल्स अमेरिका में दुर्लभ और जरूरी हैं। लेकिन समय के साथ कंपनियां इसका दुरुपयोग करने लगीं और बड़ी संख्या में एंट्री-लेवल नौकरियों के लिए विदेशियों को भर्ती करने लगीं।
एच-1बी वीजा की शुरुआत साल 1990 में हुई थी, ताकि अमेरिकी वर्कफोर्स की कमी वाले क्षेत्रों में विदेशी एक्सपर्ट्स की मदद ली जा सके। आलोचकों का कहना है कि मौजूदा व्यवस्था से अमेरिकी प्रोफेशनल्स की नौकरियां प्रभावित होती हैं।
अब तक क्या थी प्रक्रिया?
अभी तक किसी भी कर्मचारी को एच-1बी वीजा दिलाने की जिम्मेदारी कंपनी की होती है। वही कंपनी अमेरिकी सरकार को आवेदन देती है और फीस भरती है।
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पहले रजिस्ट्रेशन फीस सिर्फ 215 डॉलर थी।
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इसके अलावा करीब 780 डॉलर की फॉर्म फीस लगती थी।
कम फीस होने की वजह से बड़ी कंपनियां हजारों-लाखों आवेदन कर देती थीं। लेकिन अब 100,000 डॉलर की भारी फीस लगने के बाद केवल वही आवेदन किए जाएंगे जो कंपनी के लिए बेहद जरूरी होंगे। इसका सीधा असर छोटे बिजनेस और स्टार्टअप्स पर पड़ेगा, क्योंकि वे इतने पैसे खर्च नहीं कर पाएंगे।
भारतीय कंपनियों पर असर
अमेरिका में एच-1बी वीजा धारकों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की है।
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टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो, एचसीएल और कॉग्निजेंट जैसी कंपनियां हर साल हजारों इंजीनियर अमेरिका भेजती हैं।
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अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट, एप्पल और गूगल भी एच-1बी वीजा धारकों पर निर्भर हैं।
फिलहाल अमेरिका में एच-1बी पर काम करने वाले प्रोफेशनल्स को औसतन 60,000 डॉलर सालाना वेतन दिया जाता है, जबकि अमेरिकी कर्मचारियों की औसत सैलरी 1 लाख डॉलर से ज्यादा है। यही वजह है कि अमेरिकी प्रोफेशनल्स लंबे समय से इस व्यवस्था का विरोध कर रहे थे।
कैलिफोर्निया एच-1बी वीजा धारकों का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। यहां हजारों विदेशी टेक प्रोफेशनल्स काम कर रहे हैं, जिनमें भारतीयों की संख्या सबसे ज्यादा है।
ट्रंप का यह फैसला आने वाले महीनों में भारतीय आईटी सेक्टर और अमेरिका में काम कर रहे विदेशी प्रोफेशनल्स के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।