Jharkhand News: चक्रधरपुर की अनोखी दुर्गा पूजा, मशाल जुलूस के साथ मां दुर्गा की भव्य विदाई, 1857 की क्रांति से जुड़ी परंपरा
झारखंड, चक्रधरपुर में 1857 से चली आ रही आदि दुर्गा पूजा, मशाल जुलूस है खास।

Jharkhand News: झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर में दुर्गा पूजा का त्योहार हमेशा से खास रहा है। यहां पुरानी बस्ती इलाके में आयोजित एकड़ूपी आदि दुर्गा मां की पूजा 1857 से चली आ रही परंपरा का प्रतीक है। महाराजा अर्जुन सिंह ने ब्रिटिश राज के खिलाफ आजादी की लड़ाई के दौरान इस पूजा की शुरुआत की थी। तब से यह उत्सव न सिर्फ धार्मिक, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम की याद दिलाता है। 1912 में राज परिवार ने इसे जनता के हवाले कर दिया। तब से आदि दुर्गा पूजा कमिटी गुंडिचा मंदिर में यह आयोजन करती है। इस साल 2025 में भी यह पूजा धूमधाम से हो रही है। हजारों श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं, जो इसकी अनोखी रस्मों को देखने का मौका नहीं छोड़ते।
यह पूजा ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पोडाहाट क्षेत्र में लड़ी गई पहली क्रांति से जुड़ी है। महाराजा अर्जुन सिंह भूमिगत थे और ब्रिटिशों से बचने के लिए उन्होंने मशाल जुलूस की शुरुआत की। यह जुलूस आज भी विजयादशमी पर मां दुर्गा की मूर्ति विसर्जन के दौरान निकलता है। पूजा की जड़ें 800 साल पुरानी बताई जाती हैं, लेकिन 1857 का ऐतिहासिक मोड़ इसे अमर बना गया। स्थानीय लोग कहते हैं कि यह उत्सव मां दुर्गा की शक्ति का प्रतीक है और आजादी के दीवानों की कुर्बानी की याद दिलाता है।
मशाल जुलूस: विदाई का सबसे बड़ा आकर्षण
विजयादशमी के दिन चक्रधरपुर की सड़कें मशालों की रोशनी से जगमगा उठती हैं। मां दुर्गा की 12 से 15 फुट ऊंची और करीब 5 टन वजनी मूर्ति को कंधों पर उठाकर करीब 120 लोग वाहन बन जाते हैं। सैकड़ों भक्त हाथों में मशालें थामे ‘जय दुर्गा’ के नारे लगाते चलते हैं। यह जुलूस महाराजा अर्जुन सिंह की रणनीति का हिस्सा था, जब वे आदिवासी भेष में छिपकर ब्रिटिशों को चकमा देते थे। कोरोना काल में भी यह परंपरा नहीं टूटी। जुलूस गुंडिचा मंदिर से निकलकर विसर्जन स्थल तक जाता है, जहां मूर्ति को विदाई दी जाती है।
दुर्गा पूजा कमिटी का योगदान और भविष्य
आदि दुर्गा पूजा कमिटी इस आयोजन की रीढ़ है। अध्यक्ष दयानंद पाणि और 1984 से सचिव आशोक शडांगी के नेतृत्व में यह कमिटी काम करती है। उपाध्यक्ष लोबू मंडल, तुला पति, सपना मिस्त्री समेत कई सदस्य इसमें सक्रिय हैं। कमिटी हर साल लाखों रुपये खर्च कर पूजा आयोजित करती है। यह उत्सव स्थानीय संस्कृति को संजोए रखता है और पर्यटन को बढ़ावा देता है।
यह परंपरा हमें सिखाती है कि धार्मिक उत्सवों में इतिहास की धड़कन भी होती है। चक्रधरपुर की यह दुर्गा पूजा न सिर्फ झारखंड, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा है।