
Bihar News : बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। जिला पार्षद संघ ने सरकार से मानदेय (हॉनरेरियम) बढ़ाने की मांग की है। यह मांग ऐसे समय में उठी है, जब बिहार में पंचायत प्रतिनिधियों के लिए पहले ही मानदेय में बढ़ोतरी की घोषणा हो चुकी है। जिला पार्षदों का कहना है कि उनकी जिम्मेदारियां बढ़ी हैं, लेकिन मानदेय बहुत कम है। इस मांग को लेकर पटना में जिला पार्षद संघ ने प्रदर्शन भी किया।
जिला पार्षदों की क्या है मांग?
जिला पार्षद संघ ने सरकार से मांग की है कि उनका मानदेय कम से कम 50 प्रतिशत तक बढ़ाया जाए। अभी जिला पार्षदों को हर महीने 10,000 रुपये से 15,000 रुपये तक मानदेय मिलता है, जो उनके खर्चों के लिए पर्याप्त नहीं है। संघ के अध्यक्ष ने कहा, “हम गांवों के विकास के लिए दिन-रात काम करते हैं। सड़क, पानी, बिजली और स्कूल जैसी समस्याओं को सुलझाने में हमारी बड़ी भूमिका होती है। लेकिन इतने कम पैसे में काम करना मुश्किल है।” उन्होंने यह भी कहा कि अगर मांग पूरी नहीं हुई, तो वे बड़ा आंदोलन करेंगे।
सरकार पर क्यों बढ़ रहा है दबाव?
बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में जिला पार्षदों की मांग को नजरअंदाज करना सरकार के लिए मुश्किल हो सकता है। जिला पार्षद गांवों में सीधे लोगों से जुड़े होते हैं और उनकी बात का असर वोटरों पर पड़ता है। अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो यह सरकार की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पंचायत प्रतिनिधियों के लिए 50% मानदेय बढ़ाने का ऐलान किया था। लेकिन जिला पार्षदों का कहना है कि उनकी मांग को अलग से देखा जाए।
क्या होगा इसका असर?
जिला पार्षदों की मांग पूरी करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। अगर मानदेय बढ़ाया जाता है, तो राज्य के खजाने पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। लेकिन अगर मांग नहीं मानी गई, तो जिला पार्षदों का आंदोलन चुनाव से पहले सरकार के लिए सिरदर्द बन सकता है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि नीतीश कुमार इस मुद्दे पर जल्द फैसला ले सकते हैं, ताकि गांवों में उनकी सरकार की लोकप्रियता बनी रहे।
जिला पार्षद संघ ने सरकार को एक हफ्ते का समय दिया है। अगर इस दौरान उनकी मांग नहीं मानी गई, तो वे पटना में बड़ा प्रदर्शन करने की योजना बना रहे हैं। अब सबकी नजरें सरकार के अगले कदम पर टिकी हैं।