
डेस्क: बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को चुनाव प्रभारी बनाकर बड़ा दांव खेला है। उनकी मदद के लिए गुजरात के नेता और केंद्रीय मंत्री सीआर पाटिल और उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को सह-प्रभारी नियुक्त किया गया है।
धर्मेंद्र प्रधान का नाम इसलिए अहम है क्योंकि वे जहाँ भी चुनाव प्रभारी रहे हैं, ज्यादातर जगहों पर पार्टी को बड़ी जीत मिली है। 2010 में भी वे बिहार चुनावों के सह-प्रभारी थे, जब बीजेपी और जेडीयू ने मिलकर आरजेडी को सत्ता से बाहर कर दिया था।
जीत दिलाने में माहिर
धर्मेंद्र प्रधान को बीजेपी के सबसे भरोसेमंद रणनीतिकारों में गिना जाता है। वे अब तक छह राज्यों में चुनाव प्रभारी रह चुके हैं और हर जगह पार्टी को जीत दिलाई है, सिवाय कर्नाटक के।
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हरियाणा (2024): प्रधान के नेतृत्व में भाजपा ने सत्ता विरोधी लहर के बावजूद 90 में से 48 सीटें जीतीं और लगातार तीसरी बार सरकार बनाई।
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ओडिशा (2024): पहली बार भाजपा ने 78 सीटें जीतकर राज्य में सरकार बनाई।
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उत्तर प्रदेश (2022): पार्टी ने 403 में से 255 सीटें जीतकर योगी आदित्यनाथ को दोबारा सत्ता में पहुंचाया।
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उत्तराखंड (2017): भाजपा ने 70 में से 57 सीटों पर जीत दर्ज कर इतिहास रचते हुए लगातार दूसरी बार सरकार बनाई।
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झारखंड (2014): 72 सीटों पर लड़ी भाजपा ने 37 सीटें जीतीं और सहयोगी आजसू के साथ मिलकर सरकार बनाई।
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छत्तीसगढ़ (2008): भाजपा ने 90 में से 50 सीटें जीतकर लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की।
2023 के कर्नाटक चुनावों में भी धर्मेंद्र प्रधान प्रभारी थे, लेकिन यहां भाजपा सत्ता विरोधी लहर को रोक नहीं पाई और 224 सीटों में से केवल 66 पर सिमट गई। यह उनके चुनावी करियर की अकेली असफलता मानी जाती है।
अब बिहार की कमान उनके हाथ में है। एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है। ऐसे में भाजपा को उम्मीद है कि धर्मेंद्र प्रधान का चुनावी अनुभव और संगठन से गहरा जुड़ाव पार्टी को जीत दिलाने में मदद करेगा।
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