गाजा शांति सम्मेलन 2025 में भारत की मौजूदगी, पीएम मोदी की जगह विदेश राज्यमंत्री किर्ति वर्धन सिंह होंगे भारत के प्रतिनिधि

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सिसी द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अचानक भेजे गए निमंत्रण के बाद भारत ने गाजा शांति सम्मेलन 2025 में अपनी उपस्थिति तो दर्ज कराई है, लेकिन एक रणनीतिक फैसला लेते हुए प्रधानमंत्री की जगह विदेश राज्यमंत्री किर्ति वर्धन सिंह को प्रतिनिधि बनाकर भेजा गया है। यह कदम भारत की संतुलित और कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, ट्रंप और अल-सिसी ने पीएम मोदी को अंतिम क्षणों में आमंत्रित किया था। आमंत्रण मिलने के बाद यह अटकलें तेज हो गई थीं कि क्या मोदी स्वयं मिस्र जाएंगे। हालांकि, भारत ने परिस्थिति को देखते हुए उच्च-स्तरीय लेकिन सावधान भागीदारी का विकल्प चुना।
मिस्र सरकार की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, यह सम्मेलन गाजा पट्टी में युद्धविराम लागू कराने, क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित करने और मध्य पूर्व में सुरक्षा एवं सहयोग के नए ढांचे की शुरुआत करने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है।
इस सम्मेलन में कई वैश्विक नेता शामिल हो रहे हैं—
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फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों
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जर्मनी के चांसलर फ्रिडरिख मेर्ज़
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स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़
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संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस
इन सभी नेताओं की मौजूदगी से यह शिखर सम्मेलन वैश्विक स्तर पर बेहद महत्वपूर्ण बन गया है।
भारत की ओर से विदेश राज्यमंत्री किर्ति वर्धन सिंह की मौजूदगी यह संकेत देती है कि भारत मध्य पूर्व की शांति प्रक्रिया में सक्रिय और जिम्मेदार भागीदार बना हुआ है। भारत लंबे समय से फिलिस्तीन और इजराइल दोनों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखता आया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने इस बार “सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी” का इस्तेमाल किया है — यानी उसने अपनी उपस्थिति भी दर्ज कराई और किसी पक्ष विशेष के साथ खुलकर खड़ा भी नहीं हुआ।
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9 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच फोन पर बातचीत हुई थी। इस वार्ता में दोनों नेताओं ने इजरायल-हमास सीजफायर समझौते, रक्षा सहयोग, और टेक्नोलॉजी साझेदारी पर चर्चा की थी। मोदी ने ट्रंप को शांति प्रयासों के लिए बधाई भी दी थी।
गाजा शांति सम्मेलन भारत के लिए न केवल कूटनीतिक अवसर है बल्कि यह वैश्विक मंच पर उसकी “शांतिपूर्ण समाधान और क्षेत्रीय स्थिरता” की नीति को और मजबूत करता है।