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खाना मत छोड़ो” सुनकर गुस्सा क्यों आता है-मनोवैज्ञानिक इसे “फ़ूड ट्रॉमा” या “केयरगिवर प्रेशर” कहते हैं।

मनोवैज्ञानिक इसे “फ़ूड ट्रॉमा” या “केयरगिवर प्रेशर” कहते हैं। 90 के दशक में जब घर में खाना कम पड़ता था, माँ-दादी बार-बार यही बोलती थीं – “खा लो, पता नहीं कब मिले”।

डेस्क: माँ ने प्यार से प्लेट आगे बढ़ाई – “दो रोटी और खा लो बेटा” , अचानक सीने में जलन, गुस्सा, चिढ़ – “माँ प्लीज़ मुझे मत बोलो बार-बार!” बाहर निकले तो खुद को कोसने लगे – “ये मैंने क्या कर दिया, माँ तो चिंता करती है” , ये सिर्फ़ खाने की बात नहीं – ये 20-30 साल पुराना छिपा हुआ ट्रॉमा है जो आज भी दबा पड़ा है।

माँ की चिंता = बचपन का अनकहा दर्द

मनोवैज्ञानिक इसे “फ़ूड ट्रॉमा” या “केयरगिवर प्रेशर” कहते हैं। 90 के दशक में जब घर में खाना कम पड़ता था, माँ-दादी बार-बार यही बोलती थीं – “खा लो, पता नहीं कब मिले”। आज खाना भरपूर है, पर दिमाग में वही पुराना डर बैठा है – “अगर नहीं खाया तो भूखा मर जाऊँगा”। जब माँ फिर वही वाक्य बोलती हैं, दिमाग उस पुराने डर को फिर से जीने लगता है।

रिसर्च क्या कहती है

  • जर्नल ऑफ़ ट्रॉमेटिक स्ट्रेस (2024): 68% भारतीय युवाओं में खाने को लेकर चिंता का मुख्य कारण बचपन में बार-बार “खा लो” सुनना है।
  • न्यूरोसाइंस स्टडी: खाने के समय डाँट-फटकार से अमिग्डाला हाइपरएक्टिव हो जाता है – बड़ा होने पर भी खाना देखते ही स्ट्रेस हार्मोन बढ़ता है।
  • हार्वर्ड फ़ैमिली स्टडी: माँ-बाप का “खाना ज़बरदस्ती खिलाना” बड़ा होने पर एनोरेक्सिया या बिंज ईटिंग का 47% कारण होता है।
  • इंडियन जर्नल ऑफ़ साइकियाट्री: 30% लोग माँ के “खा लो” सुनकर गुस्सा इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है उनकी बॉडी पर कंट्रोल छीना जा रहा है।

जोखिम – ये छोटी बात ज़िंदगी भर का बोझ बन जाती है

एक 27 साल की लड़की ने बताया – “माँ रोज़ खाने की टेबल पर ताना मारती थीं – ‘इतना पतला रहेगा तो कौन करेगा शादी?’ आज मैं 48 किलो हूँ, पर खाना देखते ही घबराहट होती है। थेरेपी में पता चला – मुझे एनोरेक्सिया है, और इसका बीज माँ की प्लेट में ही बोया गया था।”

क्या करें – 4 स्टेप में इस ट्रॉमा को ठीक करें

स्थिति सही जवाब (शांति से)
माँ ने फिर “खा लो” बोला “माँ, मुझे भूख लगी तो मैं खुद ले लूँगा, आप टेंशन मत लो”
गुस्सा आने लगा तुरंत टेबल से उठकर 5 मिनट बाहर चले जाएँ
बाद में गिल्ट आए माँ से गले लगकर कहें – “आपकी चिंता मुझे अच्छी लगती है, पर मुझे अपनी भूख का पता है”
बार-बार हो रहा है फैमिली थेरेपी शुरू करें – माँ को भी समझाएँ कि ये प्रेशर अब नुकसान कर रहा है
निष्कर्ष:

माँ की चिंता प्यार है, पर तरीक़ा 30 साल पुराना हो गया है। आपका गुस्सा माँ पर नहीं – उस पुराने डर पर है जो कभी सच था, आज नहीं है। आज डिनर के वक्त माँ को गले लगाइए और सिर्फ़ इतना कहिए – “माँ, अब मैं बड़ा हो गया हूँ। आपने मुझे बचपन में बचाया, अब मुझे खुद का ख्याल रखने दीजिए।”एक वाक्य में माँ का दिल जीत लेंगे, और अपना ट्रॉमा भी ठीक कर लेंगे।

“माँ का प्यार कभी गलत नहीं होता – बस कभी-कभी पुराना हो जाता है।”

PRAGATI DIXIT
Author: PRAGATI DIXIT

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