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Dilapidated buildings of RIMS have become a cause for alarm: किसी बड़े हादसे का इंतजार?

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रांची। जमशेदपुर के एमजीएम अस्पताल हादसे के बाद रांची के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स (राजेन्द्र आयुर्विज्ञान संस्थान) की जर्जर इमारतें और बदहाल व्यवस्थाएं एक बार फिर सवालों के घेरे में हैं। अस्पताल के कई विभागों की हालत ऐसी है, मानो किसी अप्रिय घटना का इंतजार किया जा रहा हो।
अस्पताल के आर्थोपेडिक विभाग की छत पूरी तरह से जर्जर हो चुकी है। यहां का प्लास्टर झड़ चुका है और सरिया बाहर निकल आया है। भवन की यह दयनीय स्थिति कभी भी अस्पताल में आने वाले मरीजों और डॉक्टरों के लिए बड़ा खतरा बन सकती है। वर्षों पहले बने इस भवन की मरम्मत सालों से नहीं हुई है। न्यूरो विभाग की दीवारों और छतों का प्लास्टर भी धीरे-धीरे निकल रहा है। ऊपर जाने के लिए बनी सीढ़ियों की लोहे की रेलिंग में जंग लग चुका है। अगर समय रहते इनकी मरम्मत नहीं हुई, तो कोई बड़ा हादसा कभी भी हो सकता है।
मेडिसिन विभाग में भी कई जगहों पर फर्श टूटे-फूटे हैं, जिससे मरीजों को स्ट्रेचर पर लाने-ले जाने में काफी परेशानी होती है। बरसात के दिनों में यहां जल-जमाव की समस्या आम हो गई है। अस्पताल के शौचालयों की हालत तो और भी बदतर है। अधिकतर जगहों पर छत से पानी टपकता है, जिससे मरीजों और परिजनों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
रिम्स की बदहाली को लेकर कई बार सवाल उठ चुके हैं। हाल ही में झारखंड हाईकोर्ट ने भी अस्पताल की व्यवस्था पर सख्त टिप्पणी की थी और यहां तक कह दिया था कि ऐसी स्थिति में अस्पताल को बंद कर देना चाहिए। हालांकि सरकार और रिम्स प्रबंधन ने अधुनिकीकरण और विस्तार के लिए कई घोषणाएं की हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि वर्षों से पुराने भवनों की मरम्मत नहीं हो पाई है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि शीघ्र ही रिम्स की जर्जर इमारतों की मरम्मत और जरूरी सुधार नहीं किए गए, तो यहां किसी बड़े हादसे से इनकार नहीं किया जा सकता। रिम्स की मौजूदा स्थिति न सिर्फ मरीजों और डॉक्टरों के लिए खतरा है, बल्कि झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है।

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