राजनीति

Enforcement Directorate (ED) is suddenly active? बिहार चुनाव से पहले तेज हुई ईडी की कार्रवाई, तेजस्वी यादव निशाने पर

पटना:बिहार में विधानसभा चुनाव मुश्किल से कुछ महीनों की दूरी पर हैं और इसी बीच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अचानक सक्रिय हो गया है। हाल ही में नौकरी के बदले जमीन घोटाले में लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार को समन भेजा गया और पूछताछ की गई।
लालू यादव ही मनमोहन सिंह सरकार के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करने वाले इकलौते मंत्री नहीं थे। पी. चिदंबरम और ए. राजा जैसे कई अन्य लोग भी ऐसे मामलों में शामिल थे, लेकिन ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि जैसे लालू और उनका परिवार दूसरों की तुलना में अधिक भ्रष्ट हैं। सवाल यह भी उठता है कि ईडी की यह कार्रवाई चुनाव से ठीक पहले ही क्यों तेज हुई?
नौकरी के बदले जमीन घोटाला: यह मामला लालू यादव के रेलवे मंत्री रहने के दौरान 2004 से 2009 के बीच का है। आरोप है कि रेलवे में नौकरी देने के बदले उम्मीदवारों के परिवारों से उनकी जमीन यादव परिवार के नाम करवाई गई। इससे यादव परिवार ने एक विशाल भूमि बैंक बना लिया। इतना ही नहीं, उनके बेटों तेज प्रताप और तेजस्वी ने पटना के प्रमुख इलाकों में मॉल निर्माण की शुरुआत भी की, जो विवादास्पद तरीके से प्राप्त भूमि पर बनाया जा रहा था।
ईडी की अचानक सक्रियता और तेजस्वी पर फोकस: यह घोटाला काफी पहले का है और नरेंद्र मोदी सरकार पिछले 11 वर्षों से सत्ता में है। बावजूद इसके, ईडी और अन्य जांच एजेंसियां इतने वर्षों तक धीमी रहीं और अब चुनाव से कुछ महीनों पहले अचानक बेहद सक्रिय हो गई हैं। लालू परिवार पर कार्रवाई का असली मकसद तेजस्वी यादव को घेरना है, जिन्हें बिहार में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती माना जाता है।
ईडी ने हाल ही में तेजस्वी यादव से दक्षिण दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी स्थित उनके भव्य घर को लेकर सवाल किए। यह बंगला 2008 में मात्र चार लाख रुपये में खरीदा गया था, जबकि इसका बाजार मूल्य दो साल पहले ₹150 करोड़ आंका गया था। सवाल यह है कि इतनी महंगी संपत्ति इतनी कम कीमत में कैसे खरीदी गई?
लालू का अतीत और भाजपा की रणनीति: लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले में दोषी ठहराया गया था और उन्हें 14 साल की सजा सुनाई गई थी। फिलहाल वह जमानत पर बाहर हैं। हालांकि, अब उनकी राजनीतिक पकड़ पहले जैसी मजबूत नहीं रही। भाजपा को इस बात का डर है कि अगर तेजस्वी मुख्यमंत्री बन जाते हैं, तो बिहार में राजद की पकड़ फिर से मजबूत हो सकती है।
भाजपा का यह अभियान दिल्ली की राजनीति से मेल खाता है, जहां आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाले में फंसाया गया। उनके कुछ करीबी सहयोगियों को जेल भेजा गया और चुनाव से पहले ही उनकी छवि खराब कर दी गई। इसका नतीजा यह हुआ कि आम आदमी पार्टी दिल्ली के चुनावों में हार गई और भाजपा ने 25 साल बाद राजधानी में वापसी की। अब वही रणनीति बिहार में अपनाई जा रही है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई या राजनीतिक रणनीति? बिहार में भाजपा के लिए यह सुनहरा मौका है क्योंकि मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता घट रही है और उनकी सेहत को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही हैं। अगर तेजस्वी यादव को चुनाव से पहले गिरफ्तार कर लिया जाता है, तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन चुनावों से ठीक पहले विपक्षी नेताओं को चुन-चुनकर निशाना बनाना लोकतंत्र के लिए खतरा हो सकता है। यह न केवल बिहार बल्कि अन्य विपक्षी शासित राज्यों के लिए भी चेतावनी की घंटी है।

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