Ho Language Demand: ऑल इंडिया हो लैंग्वेज एक्शन कमिटी के 12 प्रतिनिधि मंडलों ने महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी से मुलाकात की। उन्होंने जनजातीय “हो” भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़ने के लिए मांग पत्र सौंपा। यह पहली बार नहीं है। 2023 में भी इसी मुद्दे पर राष्ट्रपति जी से मिलकर मांग पत्र दिया गया था। हो भाषा आठवीं अनुसूची में शामिल होने से लाखों लोगों की मातृभाषा को मजबूती मिलेगी। राष्ट्रपति जी ने प्रतिनिधियों के साथ हो भाषा में ही बात की, जो बहुत सकारात्मक रही। यह कदम जनजातीय संस्कृति को बचाने में मददगार साबित होगा।
Ho Language Demand: राष्ट्रपति से हो भाषा पर सकारात्मक बातचीत

राष्ट्रपति भवन में हुई इस मुलाकात में हो भाषा की मान्यता पर गहरी चर्चा हुई। राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी ने प्रतिनिधि मंडलों के साथ हो भाषा में वार्तालाप किया। इससे सबको लगा कि उनका प्रयास सही दिशा में है। राष्ट्रीय अध्यक्ष रामराय मुन्दुईया ने बताया कि देशभर में 50 लाख से ज्यादा लोग रोजाना हो भाषा में बात करते हैं। यह भाषा झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों में बोली जाती है। हो भाषा संरक्षण के लिए यह मान्यता जरूरी है। प्रतिनिधियों ने कहा कि बिना संवैधानिक जगह के उनकी भाषा को खतरा है। राष्ट्रपति जी की सकारात्मक प्रतिक्रिया से उम्मीद जगी है कि जल्द ही अच्छी खबर आएगी।
हो भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का इतिहास और मांगें
हो भाषा आठवीं अनुसूची में जोड़ने की लड़ाई सालों से चल रही है। राज्य सरकारों और केंद्र सरकार से बार-बार अनुरोध किया गया। पिछले साल केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह जी ने आश्वासन दिया था। झारखंड सरकार और ओडिशा सरकार ने भी भारत सरकार को सिफारिश पत्र भेजे हैं। झारखंड में हो भाषा को दूसरी राज्यभाषा का दर्जा मिला हुआ है। राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सुरा बिरुली ने कहा कि इतनी बड़ी जनजातीय आबादी अपनी मातृभाषा के संवैधानिक अधिकार से वंचित है। जबकि कई छोटी भाषाओं को पहले ही जगह मिल चुकी है। हो भाषा मान्यता से साहित्य, संस्कृति का संरक्षण होगा। इससे भारत की भाषाई विविधता मजबूत बनेगी। हमारा मानना है कि जल्द ही हो भाषा को संविधान में उचित स्थान मिलेगा।
प्रतिनिधि मंडल में कौन-कौन शामिल थे?
इस महत्वपूर्ण मुलाकात में 12 प्रतिनिधि मंडल पहुंचे। इनमें:
- राष्ट्रीय अध्यक्ष रामराय मुन्दुईया
- राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सुरा बिरुली
- बाजू चंद्र सिरका
- गिरीश चंद्र हेम्ब्रोम
- शान्ति सिदु
- बसंत बुडीउली
- फूलमती सिरका
- जगारनाथ केराई
- खिरोद हेम्ब्रोम
- गोपी लागुरी
- गोमिया ओमंग
- निकिता बिरुली
आदि थे। ये सभी हो भाषा के समर्थक हैं और जनजातीय समुदाय से जुड़े हुए हैं। उनकी मेहनत से यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा है।
हो भाषा संरक्षण का यह प्रयास सराहनीय है। लाखों लोग अपनी भाषा बचाने के लिए एकजुट हो रहे हैं। अगर यह मांग पूरी हुई, तो जनजातीय विरासत को नई ताकत मिलेगी। बिहार-झारखंड के लोग इस खबर से खुश हैं। अपडेट के लिए बने रहें। हो भाषा आठवीं अनुसूची में शामिल हो, यही सबकी कामना है।



