
नेपाल में ‘Gen-Z क्रांति’: नेपाल में सोशल मीडिया बैन पर छिड़ा विवाद अब बड़े राजनीतिक संकट में बदल गया। हजारों युवाओं के उग्र विरोध, कर्फ्यू, हिंसा और 20 से अधिक मौतों के बाद आखिरकार ओली सरकार को झुकना पड़ा और बैन हटा लिया गया।
नेपाल के संचार, सूचना एवं प्रसारण मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरुंग ने घोषणा की कि सोमवार देर रात कैबिनेट की आपात बैठक में सोशल मीडिया प्रतिबंध को वापस लेने का निर्णय लिया गया। सूचना मंत्रालय ने सभी एजेंसियों को फेसबुक, एक्स (ट्विटर), इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप समेत तमाम प्लेटफॉर्म तुरंत बहाल करने का आदेश दिया।
तीन दिन पहले लगाया गया था बैन
दरअसल, सरकार ने 4 सितंबर को 26 प्रमुख सोशल मीडिया ऐप्स पर यह कहकर रोक लगाई थी कि इन कंपनियों ने नेपाल में पंजीकरण और स्थानीय दफ्तर खोलने जैसी शर्तें पूरी नहीं की थीं। जैसे ही बैन लागू हुआ, युवाओं का गुस्सा फूट पड़ा। काठमांडू, पोखरा, विराटनगर, चितवन और अन्य शहरों में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए।
राजधानी काठमांडू में हालात तब बिगड़ गए जब प्रदर्शनकारियों ने संसद परिसर का घेराव किया और बैरिकेड तोड़कर अंदर घुसने की कोशिश की। सुरक्षाबलों को पानी की बौछार, आंसू गैस और आखिरकार गोली चलानी पड़ी। इस दौरान कम से कम 20 लोगों की मौत हो गई और 300 से अधिक लोग घायल हुए।
युवाओं का आंदोलन क्यों?
इसे ‘Gen-Z रिवोल्यूशन’ कहा जा रहा है, क्योंकि आंदोलन की अगुवाई मुख्य रूप से युवाओं और छात्रों ने की।
प्रदर्शन का तत्काल कारण था सोशल मीडिया बैन।
इसके अलावा लोग भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सरकार की नीतियों से भी नाराज़ थे।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि ओली सरकार युवाओं की आवाज दबाने और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता छीनने की कोशिश कर रही थी।
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सेना की तैनाती और कर्फ्यू
स्थिति काबू से बाहर होती देख काठमांडू और पोखरा समेत कई संवेदनशील इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया और सेना तैनात कर दी गई। बावजूद इसके, देर रात तक सड़कों पर भीड़ बनी रही।
आखिरकार बढ़ते जनदबाव और हिंसा की भयावह तस्वीरों के सामने सरकार को झुकना पड़ा। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बहाल कर दिए गए हैं और सरकार ने युवाओं से अपील की है कि वे अब प्रदर्शन बंद करें।
यह पूरा घटनाक्रम नेपाल के लोकतंत्र, सरकार और युवाओं की ताकत पर एक बड़ा संदेश देता है।