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NDA में सीट बंटवारे पर सस्पेंस बरकरार, उपेंद्र कुशवाहा के ट्वीट ने बढ़ाई सियासी हलचल

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण का नामांकन शुरू हो चुका है, लेकिन NDA गठबंधन में सीट शेयरिंग पर सस्पेंस अभी भी खत्म नहीं हुआ है। जहां एक ओर लोजपा (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान और हम के प्रमुख जीतन राम मांझी के रुख ने गठबंधन की सिरदर्दी बढ़ा दी है, वहीं अब रालोसपा (RLM) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के एक ट्वीट ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है।

उपेंद्र कुशवाहा ने शुक्रवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) पर लिखा “इधर-उधर की खबरों पर मत जाइए। वार्ता अभी पूरी नहीं हुई है। इंतजार कीजिए! मीडिया में कैसे खबर चल रही है, मुझको नहीं पता। अगर कोई खबर प्लांट कर रहा है तो यह छल है, धोखा है। आप लोग ऐसे ही सजग रहिए।”

कुशवाहा के इस बयान से यह संकेत मिल रहे हैं कि NDA के अंदर सीट बंटवारे को लेकर अब भी अंतिम सहमति नहीं बन पाई है। सूत्रों का कहना है कि कुशवाहा अपनी पार्टी को कम से कम 10 सीटों की मांग पर अड़े हुए हैं, जबकि बीजेपी और जेडीयू उन्हें इससे कम सीटें देने के पक्ष में हैं।

भाजपा की तैयारी और दिल्ली में हलचल

भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के अनुसार, शनिवार को केंद्रीय चुनाव समिति और रविवार को संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई गई है। इन बैठकों के बाद भाजपा उम्मीदवारों की पहली सूची पर अंतिम मुहर लग जाएगी। इसके पहले NDA में सीट बंटवारे की औपचारिक घोषणा की जाएगी।

इस बीच, पार्टी के कई विधायक और संभावित प्रत्याशी दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। कुछ नेताओं को उच्च नेतृत्व से बातचीत के लिए बुलाया गया है, जबकि टिकट की दौड़ में शामिल कई चेहरे दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में सक्रिय हैं।

NDA में अंदरूनी तनाव बरकरार

गठबंधन सूत्रों के मुताबिक, जेडीयू और बीजेपी के बीच सीटों की संख्या पर सहमति लगभग बन चुकी है, लेकिन लोजपा (रामविलास), हम पार्टी, और रालोसपा (RLM) के हिस्से को लेकर पेच फंसा हुआ है। चिराग पासवान लगातार 2019 की लोकसभा सीट फार्मूले की मांग कर रहे हैं, जबकि मांझी और कुशवाहा अपनी-अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए अतिरिक्त सीटें चाहते हैं।

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राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि NDA में सीट शेयरिंग का यह तनाव लंबे समय तक नहीं खिंच सकता। पहले चरण के नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और 15 अक्टूबर तक उम्मीदवारों की सूची तय करना गठबंधन के लिए अनिवार्य है। अगर समझौता जल्द नहीं हुआ, तो कुछ छोटे दल स्वतंत्र रूप से मैदान में उतर सकते हैं, जिससे NDA के वोट बैंक पर असर पड़ सकता है।

Vaibhav tiwari
Author: Vaibhav tiwari

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