
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने गुरुवार को अपने 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर नागपुर के रेशमबाग मैदान में भव्य विजयादशमी उत्सव की शुरुआत की। इस ऐतिहासिक मौके का मुख्य आकर्षण संघ प्रमुख मोहन भागवत का वार्षिक भाषण रहा, जिसकी गूंज राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक हलकों तक पहुँची।
इस खास अवसर पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे। नागपुर पहुँचने के बाद उन्होंने दीक्षाभूमि का दौरा किया—वही स्थान जहाँ 1956 में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था। उनकी मौजूदगी ने इस उत्सव को और गरिमामयी बना दिया।
रेशमबाग मैदान में अनुशासन और जोश का प्रदर्शन
नागपुर के रेशमबाग मैदान में आयोजित इस कार्यक्रम में लगभग 21,000 स्वयंसेवक पारंपरिक गणवेश में शामिल हुए। समारोह की शुरुआत शस्त्र पूजन से हुई। इसके बाद योग प्रदर्शन, मार्शल आर्ट्स, घोष (बैंड वादन) और अनुशासित परेड ने संगठन की ताकत और एकता का परिचय दिया।
आरएसएस ने घोषणा की है कि देशभर की 83,000 से अधिक शाखाओं में यह शताब्दी वर्ष विशेष कार्यक्रमों के साथ मनाया जाएगा। आने वाले महीनों में सांस्कृतिक आयोजन, सामाजिक पहलें और हिंदू सम्मेलनों की श्रृंखला होगी। संगठन की योजना है कि एक लाख से अधिक कार्यक्रम देशभर में आयोजित किए जाएंगे, जो इसके व्यापक नेटवर्क और जनसंपर्क को दर्शाते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने किया शताब्दी वर्ष का शुभारंभ
इस शताब्दी वर्ष का राष्ट्रीय स्तर पर शुभारंभ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 अक्टूबर को नई दिल्ली में किया। उन्होंने इस मौके पर स्मारक डाक टिकट और चांदी का सिक्का जारी किया। इसे संघ के योगदान और उसकी वैचारिक भूमिका की राष्ट्रीय मान्यता माना जा रहा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में विजयादशमी के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने मात्र 17 स्वयंसेवकों की उपस्थिति में की थी। 1926 में इसे “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” नाम दिया गया और उसी वर्ष पहली औपचारिक परेड हुई, जो आज तक एक परंपरा के रूप में जारी है। बीते सौ वर्षों में संघ ने सामाजिक एकता, सांस्कृतिक पहचान और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसके चलते यह भारत के सबसे प्रभावशाली संगठनों में गिना जाता है।