पूर्वी राज्य

गढ़वा के अनुमंडल मजिस्ट्रेट ने गांव में ही कोर्ट लगाकर सुनाया फैसला, 13 साल पुराना भूमि विवाद एक घंटे में सुलझा

गढ़वा। अनुमंडल दंडाधिकारी संजय कुमार ने बरडीहा प्रखंड के कौवाखोह गांव पहुंचकर गांव में ही अस्थाई कैंप कोर्ट लगाकर लंबे समय से चले आ रहे एक भूमि विवाद पर फैसला सुनाया। अच्छी बात यह रही कि इस फैसले से दोनों पक्ष संतुष्ट भी हो गये।

दरअसल इस गांव के 85 वर्षीय रामकरण पांडेय तथा उनके चचेरे भाई गीता पांडेय के बीच रास्ते के विवाद को लेकर दिसंबर 2011 से सदर अनुमंडल न्यायालय में वाद चल रहा था। पिछले दिनों वाद की सुनवाई में जब दोनों बुजुर्ग वादी एवं प्रतिवादी संजय कुमार के न्यायालय में अपना-अपना पक्ष रखने पहुंचे तो संजय कुमार ने उनकी उम्र व अवस्था को देखते हुए उनसे कहा था कि उन्हें अब बरडीहा से चलकर गढ़वा मुख्यालय तक आने की जरूरत नहीं है। इस अवस्था में उन्हें आने-जाने में बहुत दिक्कत होती होगी, इसलिए वे स्वयं उनके गांव चलकर आएंगे और उनकी बची हुई सुनवाई वहीं गांव में ही करते हुए अपना फैसला सुना देंगे।
संजय कुमार ने इस मामले के दोनों पक्षकार चचेरे भाइयों से किए गए अपने वादे के अनुसार आज उनके गांव पहुंचकर विवादित स्थल पर ही बैठकर अस्थाई कैंप कोर्ट के रूप में सुनवाई की। इस दौरान उन्होंने पक्षकारों के परिजनों एवं स्थानीय लोगों से भी भूमि विवाद के बारे में फीडबैक लिया।
कार्यालय में मौजूद अभिलेख तथा आज विस्तार से दोनों पक्षकारों को सुनने के बाद एसडीएम ने मौके पर ही अपना आदेश सुनाया जिसे दोनों पक्षों ने स्वीकार कर लिया और इस प्रकार लगभग 13 साल से चल रहे विवाद का पटाक्षेप हो गया।

क्या था विवाद
प्रथम पक्ष 75 वर्षीय गीता पांडेय ने अनुमंडल दंडाधिकारी के न्यायालय में अपने चचेरे भाई रामकरण पांडेय के विरुद्ध वाद दायर किया था कि उन्होंने आम रास्ता बाधित कर लिया है, इसी विवाद के चलते रामकरण पांडे का भी पक्के घर का निर्माण कार्य वर्षों से रुका हुआ था। लगातार सुनवाई हो भी रही थी, हर तारीख पर दोनों बुजुर्ग अनुमंडल न्यायालय में लगातार हाजिर हो रहे थे। उनकी आयु को देखते हुए मामले का त्वरित निष्पादन करने के उद्देश्य से अनुमंडल दंडाधिकारी संजय कुमार ने उनसे कहा था कि उन्हें अब से कोर्ट आने की जरूरत नहीं है, अब कोर्ट ही उनके दरवाजे आएगा। फलस्वरुप आज पक्षकारों, गवाहों और परिजनों के बीच आम राय बनाते हुए एसडीएम ने दोनों की दलीलों का मध्य मार्ग निकालते हुए फैसला कर दिया। तदुपरांत दोनों पक्षकारों का सौहार्द्रपूर्ण मिलाप भी करवाया गया। इससे जहां एक ओर प्रथम पक्ष को रास्ता मिल गया, वहीं द्वितीय पक्ष को घर बनाने के बीच आ रही अड़चन भी दूर हो गई।
इस दौरान ओमकार पांडेय, लव कुश पांडेय, मिथिलेश पांडेय आदि मौजूद थे।

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