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Women health update: महिलाओं में डिप्रेशन-चिंता की समस्या पुरुषों से कहीं ज्यादा: WHO रिपोर्ट में खुलासा, जानें कारण और बचाव के उपाय

महिलाओं में डिप्रेशन और एंग्जायटी बढ़ी, WHO रिपोर्ट में खुलासा, जानें क्या हैं कारण और बचाव के उपाय।

Women health update: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की नई रिपोर्ट ने एक चिंताजनक तस्वीर पेश की है। महिलाएं मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा जूझ रही हैं। खासकर डिप्रेशन और चिंता (एंग्जायटी) के मामले महिलाओं में तेजी से बढ़ रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 में करीब 58 करोड़ महिलाएं किसी न किसी मानसिक समस्या से परेशान थीं, जबकि पुरुषों की संख्या 51 करोड़ से थोड़ी ही ज्यादा थी। यह फर्क समाज के लिए खतरे की घंटी है। विशेषज्ञों का कहना है कि महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक और शारीरिक दबावों की वजह से ज्यादा प्रभावित होना पड़ रहा है।

यह रिपोर्ट महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर गंभीर बहस छेड़ रही है। डिप्रेशन जैसी बीमारी महिलाओं में पुरुषों से 1.5 गुना ज्यादा पाई जाती है। कोविड महामारी के दौरान यह समस्या और बढ़ गई, जहां महिलाओं में डिप्रेशन के केस 30 फीसदी और चिंता के मामले 28 फीसदी तक उछल गए। अब समय है कि समाज और सरकार मिलकर इस असमानता को दूर करें।

महिलाओं में मानसिक समस्याओं के प्रमुख आंकड़े

WHO की रिपोर्ट से साफ है कि महिलाएं मानसिक स्वास्थ्य की जंग में अकेली नहीं, बल्कि बोझ भी ज्यादा उठा रही हैं। डिप्रेशन के कुल मामलों में 65 फीसदी महिलाओं से जुड़े हैं, जबकि पुरुषों में सिर्फ 35 फीसदी। चिंता विकारों के 63 फीसदी केस 20 से 24 साल की युवा महिलाओं में देखे गए। खाने की आदतों से जुड़ी बीमारियां (ईटिंग डिसऑर्डर) में भी महिलाओं की हिस्सेदारी 63 फीसदी है।

ये आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य पुरुषों से कहीं कमजोर हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह फर्क न सिर्फ महिलाओं, बल्कि पूरे समाज को प्रभावित करेगा। आने वाली पीढ़ियों पर भी बुरा असर पड़ेगा।

महिलाओं को क्यों ज्यादा परेशानी?

महिलाओं में मानसिक समस्याओं के पीछे कई वजहें हैं। सबसे बड़ा कारण हार्मोनल बदलाव है। मासिक धर्म, गर्भावस्था, प्रसव के बाद का समय और मेनोपॉज जैसी स्थितियां महिलाओं को भावनात्मक रूप से कमजोर बनाती हैं। इसके अलावा, घरेलू हिंसा और यौन शोषण जैसी घटनाएं डिप्रेशन, चिंता और पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) को जन्म देती हैं।

सामाजिक दबाव भी कम नहीं। घर-परिवार की जिम्मेदारी, बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल, नौकरी में भेदभाव और आर्थिक तंगी तनाव को दोगुना कर देती है। एक विशेषज्ञ ने कहा, “महिलाएं समाज का आधार हैं, लेकिन उन्हें मिलने वाला बोझ उन्हें तोड़ रहा है। कोविड जैसे संकटों ने इस समस्या को और गहरा किया।

लक्षणों पर नजर रखें

मानसिक स्वास्थ्य की समस्या के शुरुआती संकेतों को पहचानना जरूरी है। डिप्रेशन में उदासी, थकान और रुचि की कमी दिखती है। चिंता में बेचैनी, नींद न आना और दिल की धड़कन तेज होना आम है। ईटिंग डिसऑर्डर में खाने की आदतें बिगड़ जाती हैं। अगर ये लक्षण दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।

बचाव के आसान उपाय

WHO ने सुझाव दिया है कि जेंडर के आधार पर मानसिक स्वास्थ्य नीतियां बनानी चाहिए। गर्भावस्था और प्रसव के बाद की देखभाल मजबूत हो। हिंसा पीड़ित महिलाओं के लिए सहायता केंद्र बढ़ें। कार्यस्थल पर समानता सुनिश्चित करें। रोजाना व्यायाम, स्वस्थ खान-पान और परिवार का साथ समस्या को कम कर सकता है। महिलाओं को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की आजादी दें।

एक रिपोर्ट में कहा गया, इस फर्क को मिटाना महिलाओं के लिए ही नहीं, समाज के लिए जरूरी है। सरकारों को तुरंत कदम उठाने चाहिए। अगर आप महिला हैं या किसी की देखभाल कर रही हैं, तो मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें। छोटे बदलाव बड़े फर्क ला सकते हैं।

Sanjna Gupta
Author: Sanjna Gupta

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