
बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी के बीच राज्य की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है। चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) के फैसले ने सियासी घमासान खड़ा कर दिया है। राजद नेता और महागठबंधन के अहम चेहरा तेजस्वी यादव ने इस कदम को गरीबों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के वोटिंग अधिकार पर हमला बताया है और इसके खिलाफ 9 जुलाई को राज्यव्यापी चक्का जाम का ऐलान किया है।
तेजस्वी ने रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “हमारा लोकतंत्र खतरे में है। गरीबों और वंचितों से वोट का अधिकार छीना जा रहा है। 9 जुलाई को राहुल गांधी हमारे साथ चक्का जाम में शामिल होंगे। हम ट्रेड यूनियनों और आम जनता के साथ मिलकर सड़कों पर उतरेंगे।”
विपक्ष ने चुनाव आयोग की मंशा पर उठाए सवाल
राजद के वरिष्ठ नेता मृत्युंजय तिवारी ने चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल खड़े करते हुए कहा, “चुनाव आयोग की निष्पक्षता संदेह के घेरे में है। जब आयोग ही किसी खास पार्टी के दबाव में काम करने लगे, तो लोकतंत्र में विरोध स्वाभाविक है।”
उन्होंने ये भी कहा कि राजद ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और अब जनता के बीच जाकर अपनी बात रखेगा। “हम वोट के अधिकार की रक्षा के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं,” उन्होंने कहा।
मनोज झा ने आयोग के आंकड़ों पर खड़े किए सवाल
राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग की योजना का असर गरीब, दलित, पिछड़े और मुस्लिम समुदायों पर पड़ेगा। उन्होंने कहा, “खुद आयोग कह रहा है कि बिहार के 20% लोग बाहर रहते हैं। ऐसे में सवाल ये है कि वे सब दस्तावेज लेकर कब आएंगे और कैसे अपने नाम सूची में शामिल करा पाएंगे?”
मनोज झा ने यह भी जोड़ा कि 9 जुलाई का बंद पहले से तय था, लेकिन अब इस मुद्दे ने इसे और व्यापक बना दिया है।
राजनीतिक मायने
विशेष पुनरीक्षण कार्यक्रम को लेकर उठे इस राजनीतिक भूचाल के कई मायने हैं। विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और इस प्रक्रिया को लेकर जनता में भ्रम की स्थिति है। विपक्ष इसे गरीबों और प्रवासी मजदूरों के मताधिकार पर हमला बता रहा है, वहीं सत्तारूढ़ पक्ष अब तक इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है।