Jharkhand News: शिबू सोरेन के आत्मसमर्पण की अनूठी कहानी, एक IAS अधिकारी ने उनकी जान बचाई, वरना हो सकता था एनकाउंटर।
शिबू सोरेन के सरेंडर की कहानी, IAS की सूझबूझ ने रोका एनकाउंटर, झारखंड आंदोलन को मिली नई दिशा

Jharkhand News: झारखंड के दिशोम गुरु शिबू सोरेन की जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया था, जब वे एनकाउंटर में मारे जा सकते थे। लेकिन एक IAS अधिकारी की सूझबूझ और साहस ने उनकी जान बचा ली। यह कहानी न केवल रोमांचक है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे एक व्यक्ति के फैसले से इतिहास बदल सकता है। आइए, जानते हैं Shibu Soren surrender story की पूरी सच्चाई।
कैसे शुरू हुई शिबू सोरेन की कहानी?
शिबू सोरेन, जिन्हें दिशोम गुरु के नाम से जाना जाता है, झारखंड के आदिवासी समुदाय के बड़े नेता थे। 1970 के दशक में वे झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक बने और आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उस समय उनकी गतिविधियों को सरकार गैरकानूनी मानती थी। पुलिस और प्रशासन उन्हें पकड़ने के लिए तलाश कर रहे थे। कई बार उनके खिलाफ एनकाउंटर की योजना भी बनी, लेकिन एक IAS अधिकारी ने स्थिति को संभाला।
IAS अधिकारी ने कैसे बचाई जान?
उस समय एक युवा और ईमानदार IAS अधिकारी की तैनाती झारखंड में थी। शिबू सोरेन को पकड़ने के लिए पुलिस ने कई ऑपरेशन चलाए, लेकिन IAS अधिकारी ने समझा कि एनकाउंटर से समस्या हल नहीं होगी। उन्होंने शिबू सोरेन से संपर्क साधा और उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए मनाया। यह आसान नहीं था, क्योंकि शिबू को डर था कि सरेंडर करने पर उनकी जान को खतरा हो सकता है।
IAS अधिकारी ने शिबू को भरोसा दिलाया कि उनकी सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी ली जाएगी। कई गुप्त बैठकों और बातचीत के बाद, शिबू सोरेन ने सरेंडर करने का फैसला किया। यह एक ऐतिहासिक पल था, क्योंकि इससे न केवल उनकी जान बची, बल्कि झारखंड आंदोलन को भी नई दिशा मिली।
सरेंडर के बाद क्या हुआ?
शिबू सोरेन के सरेंडर के बाद, वे मुख्यधारा की राजनीति में शामिल हुए। उनकी पार्टी JMM ने झारखंड के गठन में अहम भूमिका निभाई। शिबू सोरेन बाद में झारखंड के मुख्यमंत्री भी बने। इस घटना ने साबित किया कि हिंसा के बजाय बातचीत से बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं।
क्यों है यह कहानी खास?
यह कहानी विशेष है, क्योंकि यह साहस, बुद्धिमत्ता और मानवीयता का प्रतीक है। एक IAS अधिकारी ने न सिर्फ एक व्यक्ति की जिंदगी बचाई, बल्कि एक पूरे आंदोलन को नया दिशा-निर्देश दिया। आज भी लोग शिबू सोरेन के आत्मसमर्पण की कहानी को याद करते हैं, क्योंकि यह दर्शाता है कि सही वक्त पर लिया गया निर्णय कितना बड़ा परिवर्तन ला सकता है।