West Bengal SIR: पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग की खास मुहिम ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ (SIR) से बड़ा खुलासा हुआ है। करीब 65 से 70 लाख वोटरों के नाम वोटर लिस्ट से मिट सकते हैं। यह आंकड़ा राज्य के कुल मतदाताओं का करीब 10 फीसदी है। पहले चरण में 7.6 करोड़ वोटर रिकॉर्ड को डिजिटल रूप देने का काम लगभग पूरा हो गया है। 99.4 फीसदी फॉर्म डिजिटाइज हो चुके हैं। लेकिन कई बड़ी कमियां सामने आई हैं, जैसे कुछ वोटरों का मैपिंग न होना और फॉर्म न इकट्ठा हो पाना। इससे आने वाले चुनावों में राजनीतिक हलचल बढ़ सकती है। चुनाव विशेषज्ञों का कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर नाम कटना वोटरों की आवाज को कमजोर कर सकता है। यह प्रक्रिया पारदर्शिता लाने के लिए शुरू हुई थी, लेकिन अब यह प्रशासनिक नाकामी की कहानी बन गई है। वोटरों को सतर्क रहने की जरूरत है, ताकि उनका मताधिकार न छिन जाए।
नाम क्यों कट रहे? आंकड़े बताते हैं पूरी सच्चाई
SIR प्रक्रिया में कई वजहों से वोटरों के नाम खतरे में हैं। सबसे पहले, 28 से 30 लाख आवेदकों को 2002 की पुरानी वोटर लिस्ट से जोड़ा नहीं जा सका। इन लोगों को अपनी वोटिंग का हक बचाने के लिए 16 दिसंबर 2025 से 7 फरवरी 2026 तक सुनवाई में जाना होगा। वहां 13 जरूरी दस्तावेज दिखाने पड़ेंगे। अगर नहीं गए, तो नाम कट जाएगा। दूसरी तरफ, 54.6 लाख नाम ‘अनकलेक्टिबल’ यानी इकट्ठा न हो सकने वाले हैं। ये ड्राफ्ट रोल से 16 दिसंबर को ही बाहर हो जाएंगे। इनमें से 23.7 लाख मौत की वजह से, 19 लाख घर बदलने की वजह से, 10.1 लाख पता न लगने की वजह से और 1.2 लाख डुप्लिकेट नाम हैं। कुल 21,000 वोटरों को फॉर्म मिले लेकिन लौटाए नहीं। इनके नाम ड्राफ्ट में नहीं आएंगे, लेकिन फॉर्म 6 भरकर दोबारा नाम दर्ज करा सकते हैं। चुनाव आयोग का एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “यह चरण वोटर लिस्ट को साफ-सुथरा बनाने के लिए जरूरी है। प्रभावित वोटर सुनवाई में आकर या नई अप्लाई करके अपना हक बचा सकते हैं, लेकिन समय सीमा का पालन करें।” ये आंकड़े राज्य भर में फैले हैं, खासकर शहरी और ग्रामीण इलाकों में मैपिंग की कमी से।
चुनावों पर असर: राजनीति में उथल-पुथल की आशंका
यह SIR प्रक्रिया 14 फरवरी 2026 को फाइनल रोल के साथ खत्म होगी। लेकिन 70 लाख वोटरों के नाम कटने से बंगाल की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि इससे वोटरों का भरोसा कम हो सकता है और पार्टियां अपनी रणनीति बदलनी पड़ सकती हैं। खासकर मुंबई नगर निगम चुनावों से पहले यह मुद्दा गरम हो सकता है। प्रशासन की नाकामी साफ दिख रही है, जैसे फील्ड वर्क में देरी और डिजिटल सिस्टम की कमजोरी। आयोग ने तकनीक का सहारा लिया, लेकिन जमीनी स्तर पर लापरवाही ने सब बिगाड़ दिया। वोटरों को सलाह है कि वे जल्दी से फॉर्म 6 भरें या सुनवाई में हिस्सा लें। अगर समय पर कार्रवाई न की, तो लाखों लोगों का वोट बेकार हो जाएगा। कुल मिलाकर, यह घटना बंगाल के चुनाव तंत्र की कमजोर कड़ियों को उजागर करती है। सरकार और आयोग को अब तुरंत सुधार करने होंगे, वरना लोकतंत्र की जड़ें हिल सकती हैं। वोटर जागरूक रहें और अपना हक मजबूती से थामें।



