Bihar News: बिहार मतदाता सूची संशोधन, पश्चिम बंगाल और भाजपा पर क्यों उठ रहे सवाल?
बिहार में 1 अगस्त को ड्राफ्ट वोटर लिस्ट, 30 सितंबर को अंतिम सूची, BJP और विपक्ष में तीखी बहस।

Bihar News:बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर बड़ा विवाद छिड़ गया है। विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग के इस कदम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जबकि पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने इसे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) लागू करने की साजिश करार दिया है। इस मुद्दे ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) और पश्चिम बंगाल को भी चर्चा के केंद्र में ला दिया है।
चुनाव आयोग का दावा और विपक्ष का विरोध
चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की घोषणा की थी। आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया मतदाता सूची को शुद्ध करने के लिए जरूरी है, क्योंकि इसमें बांग्लादेशी, नेपाली और म्यांमार के नागरिकों के नाम होने की आशंका है। घर-घर सर्वेक्षण में बूथ लेवल अधिकारियों ने ऐसी अनियमितताएं पकड़ी हैं। आयोग का कहना है कि यह कदम जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत उठाया गया है, ताकि केवल पात्र मतदाताओं का नाम सूची में रहे।
विपक्षी दल, खासकर राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस और टीएमसी, इसे गरीब, दलित और अल्पसंख्यक समुदायों को वोटिंग के अधिकार से वंचित करने की साजिश बता रहे हैं। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा, “यह प्रक्रिया लाखों मतदाताओं को वोट देने से रोकने की चाल है। बिहार के बाद पश्चिम बंगाल को निशाना बनाया जाएगा।”
Bihar News: पश्चिम बंगाल क्यों चिंतित?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग पर BJP की कठपुतली बनने का आरोप लगाया है। उन्होंने दावा किया कि बिहार में शुरू हुई यह प्रक्रिया असल में पश्चिम बंगाल को निशाना बनाने की साजिश है, जहां 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं। ममता ने इसे NRC का छिपा हुआ रूप बताया। BJP नेताओं का कहना है कि पश्चिम बंगाल में अवैध प्रवासियों की संख्या ज्यादा है, और SIR से मतदाता सूची को साफ करने में मदद मिलेगी। BJP सांसद राजू बिष्ट ने कहा, “ममता सरकार अल्पसंख्यकों में डर फैलाकर अपना वोट बैंक बचाने की कोशिश कर रही है।”
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
10 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने SIR पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन आयोग से आधार, वोटर कार्ड और राशन कार्ड को प्रमाण के रूप में स्वीकार करने को कहा। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21 और 326 का उल्लंघन करती है। कोर्ट ने आयोग से पूछा कि इस प्रक्रिया को इतनी जल्दबाजी में क्यों शुरू किया गया।