बिहार की लोकसंस्कृति की पहचान बनीं शारदा सिन्हा
‘बिहार कोकिला’ के नाम से मशहूर लोकगायिका शारदा सिन्हा की आज पहली पुण्यतिथि है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उनकी सुरीली आवाज ने बिहार की लोक संस्कृति को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। पीएम मोदी ने कहा कि छठ महापर्व से जुड़े उनके मधुर गीत आज भी हर घर में गूंजते हैं और उनकी स्मृति हमेशा जनमानस में बनी रहेगी।
वाराणसी: शारदा सिन्हा सिर्फ एक गायिका नहीं थीं, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक आत्मा की स्वर प्रतिध्वनि थीं। मैथिली और भोजपुरी लोकसंगीत को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में उनका योगदान अतुलनीय रहा। उन्होंने “पाहिले पहील छठी मईया”, “केलवा जे कटे ना”, और “उग है सूरज देव” जैसे गीतों के माध्यम से छठ पूजा को लोक चेतना का हिस्सा बना दिया।
उनकी गायकी में न केवल सुर और ताल था, बल्कि उसमें संस्कार, परंपरा और मातृत्व का भाव झलकता था। यही कारण है कि उन्हें प्यार से “बिहार कोकिला” कहा गया।
🇮🇳 पीएम मोदी की श्रद्धांजलि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी श्रद्धांजलि संदेश में कहा—
“बिहार कोकिला शारदा सिन्हा जी की पहली पुण्यतिथि पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि। उन्होंने बिहार की कला-संस्कृति को लोकगीतों के माध्यम से नई पहचान दी। महापर्व छठ से जुड़े उनके सुमधुर गीत सदैव जनमानस में रचे-बसे रहेंगे।”
पीएम मोदी ने भोजपुरी और मैथिली लोकसंगीत में उनके योगदान की भी सराहना की और कहा कि उन्होंने भारतीय संगीत जगत में अपनी अलग पहचान बनाई।
नीतीश कुमार ने भी किया स्मरण
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी शारदा सिन्हा को याद करते हुए कहा—
“बिहार कोकिला, पद्मश्री एवं पद्म भूषण से सम्मानित स्व. शारदा सिन्हा जी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। उनके छठ गीत आज भी देश के कोने-कोने में गूंजते हैं। बिहार की भूमि और संगीत प्रेमियों में उनकी स्मृति सदा अमर रहेगी।”
🏅 सम्मान और उपलब्धियां
शारदा सिन्हा ने अपने संगीत करियर में कई सम्मान प्राप्त किए—
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पद्मश्री (1991)
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पद्म भूषण (2018)
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बिहार रत्न सहित अनेक राज्य स्तरीय पुरस्कार
उनका संगीत भारतीय लोकसंगीत की गरिमा को पुनः स्थापित करने वाला साबित हुआ। उन्होंने हिंदी फिल्मों जैसे “मिशन कश्मीर” और “लगान” में भी अपनी आवाज दी, जिससे उन्हें राष्ट्रीय पहचान मिली।
🕊️ अंतिम यात्रा और सम्मान
शारदा सिन्हा का निधन 5 नवंबर 2024 की शाम को दिल्ली के एम्स अस्पताल में हुआ था। वे सेप्टीसीमिया से पीड़ित थीं। उनके निधन की खबर ने पूरे बिहार और संगीत जगत को शोक में डूबा दिया था।
उनके पार्थिव शरीर को दिल्ली से पटना लाया गया, जहां पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। यह वही स्थान था, जहां उनके पिता का भी अंतिम संस्कार हुआ था।
लोकसंगीत की विरासत
शारदा सिन्हा की विरासत सिर्फ उनके गीतों तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्होंने एक पूरी पीढ़ी को लोकसंगीत की ओर प्रेरित किया। आज भी छठ महापर्व के दौरान जब उनके गीत बजते हैं, तो हर घर, हर घाट और हर आरती में उनकी आवाज गूंज उठती है।
उनका संगीत हमें याद दिलाता है कि भारतीय परंपराओं में मिट्टी की खुशबू, परिवार का बंधन और देवी-देवताओं के प्रति भक्ति किस तरह संगीत के सुरों में ढल जाती है।
निष्कर्ष:
शारदा सिन्हा की पहली पुण्यतिथि हमें यह याद दिलाती है कि सच्चे कलाकार कभी नहीं मरते। उनकी आवाज, उनके गीत और उनकी लोकधुनें आज भी उतनी ही जीवंत हैं जितनी उनके जीवनकाल में थीं। प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा दी गई श्रद्धांजलि इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत के दिलों में अपनी जगह बनाई।
छठ महापर्व का हर गीत जब गूंजेगा, तो उसमें शारदा सिन्हा की आत्मा और संगीत का अमर स्वर हमेशा जीवित रहेगा।



