https://whatsapp.com/channel/0029VajZKpiKWEKiaaMk4U3l
विविध

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी रांची में जेल मैनुअल में सुधार और विचाराधीन कैदियों के मानवाधिकारों की रक्षा पर परिचर्च

रांची: मानवाधिकार दिवस 2024 के अवसर पर राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय रांची (NUSRL) के सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स एंड सबऑल्टर्न स्टडीज (CHRSS) द्वारा “76वें मानवाधिकार घोषणा-पत्र (UDHR-1948)” की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। विषय था “जेल के भीतर, दोष से परे: विचाराधीन कैदियों की वास्तविकता”. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) अशोक आर. पाटिल की उपस्थिति में परिचर्चा का उद्घाटन किया गया।

इस चर्चा में जेलों की स्थिति, विचाराधीन कैदियों को दी जाने वाली कानूनी सहायता, और उनके मानवाधिकारों की रक्षा जैसे विषयों पर गहन विचार-विमर्श किया गया। पैनल में प्रमुख वक्ता थे:
• हमीद अख्तर (एआईजी जेल, झारखंड)
• डॉ. पी.एम. टोनी (निदेशक, बगीचा, नामकुम, रांची)
• शशि सागर वर्मा (महासचिव, PUCL, रांची)
• शैलेश पोद्दार (अधिवक्ता, झारखंड हाईकोर्ट)
• अपूर्वा विवेक (अधिवक्ता, झारखंड हाईकोर्ट एवं संस्थापक, हाशिया, SLCW)

चर्चा का समन्वय NUSRL के सहायक प्रोफेसर और सेंटर के संयोजक रामचंद्र उरांव और दीपाशी स्वरा ने किया।

कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) अशोक आर. पाटिल ने अपने उद्घाटन संबोधन में कहा कि विश्वविद्यालय, बेंगलुरु और दिल्ली जैसे राज्यों की सरकारों और एनजीओ के साथ मिलकर कैदियों के लिए कानूनी सुविधाओं और मानवाधिकारों में सुधार के लिए काम कर रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि झारखंड में भी इस दिशा में प्रयास जारी हैं, जिसमें अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन का सहयोग मिल रहा है। उन्होंने आश्वासन दिया कि विश्वविद्यालय राज्य सरकार और अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन के साथ मिलकर जल्द ही इस क्षेत्र में कार्य आरंभ करेगा।

हामिद अख्तर ने झारखंड गठन से पहले जेलों की स्थिति पर प्रकाश डाला। उन्होंने रांची जेल का उदाहरण देते हुए बताया कि जहां 10 लोगों के लिए व्यवस्था थी, वहां 100 कैदियों को रखा जाता था। इस कारण कैदियों को बारी-बारी से सोना पड़ता था। उन्होंने मौजूदा स्थिति में सुधार का जिक्र करते हुए सुधार की दिशा में और प्रयास करने की आवश्यकता पर बल दिया। साथ ही, उन्होंने कैदियों के प्रति सहानुभूति, मानवीय मूल्यों, और सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया।

डॉ. पी.एम. टोनी ने बिरसा मुंडा जेल में आदिवासी और दलित कैदियों की स्थिति पर अपने शोध प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि 18 से 40 वर्ष के बीच के अधिकांश कैदी आदिवासी समुदायों से हैं, जो अपने परिवारों के एकमात्र कमाने वाले सदस्य हैं और जिन पर माओवादी समर्थक होने के आरोप लगाए गए हैं। उन्होंने जेलों में क्षमता से 200% अधिक भीड़ और विचाराधीन कैदियों के मामलों के 75% लंबित रहने की समस्या का उल्लेख किया।

शशि सागर वर्मा ने कहा कि जेल की ऊंची दीवारें कैदियों की आवाज़ को बाहर तक पहुंचने नहीं देतीं। उन्होंने यह चिंता जताई कि अगर कैदियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है, तो उनकी सुनवाई के लिए कोई नहीं होता।

अपूर्वा विवेक ने महिला कैदियों की स्थिति पर चर्चा करते हुए बताया कि कई महिलाएं गर्भवती हालत में जेल पहुंचती हैं। उन्होंने जेल मैनुअल में इस संबंध में दिशानिर्देशों की कमी का जिक्र किया और कहा कि कई महिलाएं अपने बच्चों को रखना नहीं चाहतीं, लेकिन कोई अन्य विकल्प नहीं होने के कारण उन्हें ऐसा करना पड़ता है।

श्री शैलेश पोद्दार ने वकील के रूप में अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि पुलिस द्वारा अदालत में प्रस्तुत मामलों में कई बार गंभीर चूक होती है। उन्होंने एक उदाहरण दिया जिसमें एक महिला ने बलात्कार के आरोप से इनकार किया और कहा कि वह अपने प्रेमी के साथ भागी थी, जबकि पुलिस ने तीन निर्दोष व्यक्तियों को गिरफ्तार किया था।

चर्चा में मुख्य रूप से जेल मैनुअल में सुधार, विचाराधीन कैदियों के लिए कानूनी सहायता, और राज्य सरकार व जेल प्रशासन के साथ एनजीओ की भूमिका पर जोर दिया गया।

newsmedia kiran.com
Author: newsmedia kiran.com

Welcome to News Media Kiran, your premier source for global news. Stay updated daily with the latest in sports, politics, entertainment, and more. Experience comprehensive coverage of diverse categories, keeping you informed and engaged.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!