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रांची में नदीम खान, मुहम्मद जुबैर समेत साम्प्रदायिकता उजागर करने वाले सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के समर्थन में दिखाई एकजुटता

रांची-मानवाधिकार दिवस पर रांची के नागरिकों ने अल्बर्ट एक्का चौक पर एकजुट होकर भाजपा सरकारों द्वारा नदीम खान, मुहम्मद जुबैर समेत साम्प्रदायिकता उजागर करने वाले सभी कार्यकर्ताओं के प्रताड़ना का कड़ा विरोध किये. साथ ही, हिंदुत्ववादी संगठनों और लोगों द्वारा, भाजपा के समर्थन से, देश को धर्म के नाम पर खोदने और नफ़रत व सांप्रदायिक हिंसा फ़ैलाने का विरोध किये. इस राजनीति में पुलिस व्यवस्था व न्यायालयों की संलिप्तता का भी विरोध किया गया. विरोध प्रदर्शन का आयोजन झारखंड जनाधिकार महासभा, APCR, बगाईचा, महिला उत्पीड़न विरोधी विकास समिति, वर्किंग पीपल एलायंस, नारी शक्ति क्लब, पीयूसीएल, साझा कदम, व अन्य कई संगठनों द्वारा किया गया था.

लोकतांत्रिक तरीके से नफरत और सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ लड़ने वाले एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) से जुड़े मानवाधिकार कार्यकर्ता नदीम खान और तथ्यान्वेषी मोहम्मद ज़ुबैर पर भाजपा सरकारों द्वारा फर्जी मामला दर्ज किया गया है. नदीम और APCR ने लिंचिंग, नफ़रती भाषणों, बुलडोजर राज और सांप्रदायिक हिंसा के मामलों को उजागर करने तथा इनके पीड़ितों को कानूनी सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। ज़ुबैर ने मोदी सरकार के झूठे, नफरती एवं सांप्रदायिक प्रचार को उजागर करने में अहम भूमिका निभाई है।

एक ओर 29 नवम्बर को APCR ने उत्तर प्रदेश के सम्भल में मुसलमानों पर हुई पुलिसिया हिंसा के विरुद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायलय में याचिका दर्ज की और वहीं दूसरी ओर मोदी सरकार की दिल्ली पुलिस ने 30 नवम्बर को नदीम और APCR के विरुद्ध एक फर्जी मामले में प्राथमिकी दर्ज कर गिरफ़्तारी की कोशिश की. ज़ुबैर ने हिंसक हिंदुत्व नेता यति नर्सिंघानंद के नफरती भाषण पर आपत्ति जताई, पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने उल्टा उन्हीं पर धार्मिक समूहों के बीच नफ़रत फैलाने और भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कर दी है.

प्रदर्शन में उपस्थित लोगों ने कहा कि इन दोनों के मामले एवं उत्तर प्रदेश के सम्भल में मस्जिद के नीचे मंदिर खोजने की होड़ और मुसलमानों पर हुई हिंसा साफ़ रूप से दर्शाते हैं कि किस प्रकार भाजपा सरकारें देश के संविधान को दरकिनार कर हिन्दू राष्ट्र बनाने में लगे हैं और किस तरह पुलिस व न्यायालय इसमें हिस्सेदार बन रहे हैं.

पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 के विपरीत जाकर सम्भल में स्थानीय अदालत ने न केवल 900 साल पुरानी शाही जामा मस्जिद को हरिहर मंदिर बताने वाले हिंदुत्व संगठनों के लोगों की याचिका को स्वीकार किया. बल्कि बिना मुसलमान पक्ष को सुनवाई और अपील का मौका दिए याचिका दर्ज होने के चंद घंटों में ही मस्जिद के सर्वेक्षण का गैर-क़ानूनी आदेश दे दिया. इसके बाद 24 नवम्बर को भारी पुलिस फ़ोर्स के साथ सर्वेक्षण करने पहुंची टीम के साथ स्थानीय लोगों की नोकझोक हुई जिसके बाद पुलिस ने मुसलमाओं पर व्यापक हिंसा की. पुलिसिया हिंसा में 5 मुसलमान युवा मारे गयें और कईओं को गिरफ्तार किया गया.

यह गौर करने की बात है कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 बना था. इस अधिनियम के अनुसार आज़ादी के समय (15 अगस्त 1947) देश में जिस भी धार्मिक स्थल में जिस भी धर्म अनुसार पूजा होती थी, वही यथा स्थिति हमेशा रहेगी और उन्हें बदलने की किसी प्रकार की कोशिश नहीं की जाएगी. लेकिन मोदी सरकार के कार्यकाल में, हिन्दुत्ववादी विचारधारा के लोगों व संगठनो ने देश के विभिन्न ऐतिहासिक मस्जिदों और दरगाहों के नीचे तथ्यों के विपरीत मंदिर खोजने की होड़ लगा दी है. पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 का उल्लंघन करते हुए ऐसे मुहिमों की अनुमति देकर न्यायालय भी इस नफरती राजनीति का हिस्सा बन रहे हैं.

इस प्रताड़ना और नफ़रत की राजनीति के विरुद्ध पूरे देश के नागरिक संगठन एकजुट होकर 9-15 दिसम्बर 2024 के दौरान #FightingHateDefendingDemocracy अभियान चला रहे हैं. प्रदर्शन में उपस्थित संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने INDIA गठबंधन से मांग किया कि वे सड़क से संसद तक इस नफ़रत, साम्प्रदायिकता व दमन का विरोध करें. साथ ही, उन्होंने निम्न मांगे रखी – 1) नदीम और ज़ुबैर पर दर्ज फर्जी प्राथमिकियां रद्द हो, 2) नफ़रत की राजनीति और हिंसा बंद हो, 3) सम्भल में मुसलमानों पर हुई हिंसा के दोषियों पर कार्यवाई हो 4) पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 को पूर्ण रूप से लागू किया जाये और धार्मिक स्थलों को खोदकर नए धार्मिक स्थल बनाने की कोशिश न की जाये एवं 5) पुलिस, प्रशासन और न्यायालय अपनी संवैधानिक गरिमा का सम्मान करते हुए भाजपा और आरएसएस के हिंदुत्व एजेंडा का एक हिस्सा ना बने.

प्रदर्शन में अलोका कुजूर, एलिस एक्का, अंसारी, अनवर, अनिल अरुण, अजीता जॉर्ज, बी बी चौधरी, बिनीता सुंदी, डॉली मुर्मू, एलिना होरा, हीरा मार्डी, जागरान मुर्मू, जियाउल्लाह, कुमुद, लीना, माला बिस्वा, मनु मुर्मू, महेंद्र तिग्गा, प्रवीर पीटर, परन, रत्न तिर्की, रेणु दिवान, रेनू उरांव, रिया पिंगुआ, राजदेव राजू, रोज़ मधु तिर्की, सिसिलिया लाकरा, सालगे सोरेन, सोनामनी हंसदा, सुषमा बिरुली, शांता सुनील, शीतल टोप्पो, श्रीनिवास, सिराज दत्ता, विजय चौरसिया, विनीता कच्छप व कई अन्य साथी शामिल हुए.

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