वाराणसी: 1896 में स्वामी विवेकानंद और निकोला टेस्ला की मुलाकात न्यूयॉर्क में हुई थी। विवेकानंद ने टेस्ला को वेदांत और प्राण ऊर्जा का ज्ञान दिया, तो टेस्ला ने उन्हें बिजली के रहस्य समझाए। दोनों ने मिलकर सोचा था कि प्राचीन भारतीय ज्ञान और आधुनिक विज्ञान से दुनिया को मुफ्त ऊर्जा दी जा सकती है। ये दोस्ती सिर्फ़ दो महान लोगों की नहीं, पूर्व और पश्चिम के विचारों की ऐतिहासिक मिलन थी। पढ़िए वो कहानी जो आज भी दिल को छूती है।
वो पल जब पूर्व और पश्चिम की दो महान आत्माएँ मिलीं
1896 का न्यूयॉर्क। एक तरफ़ भगवा वस्त्र में स्वामी विवेकानंद – जो शिकागो की धर्म संसद में तालियाँ बटोर चुके थे। दूसरी तरफ़ लंबा कोट और टोपी में निकोला टेस्ला – बिजली का जादूगर। दोनों की मुलाकात एक साधारण ड्राइंग रूम में हुई, लेकिन उस शाम का असर पूरी सदी पर पड़ा।
क्या हुआ उस मुलाकात में? दिल छू लेने वाली पूरी कहानी
स्वामी विवेकानंद ने टेस्ला को वेदांत और आकाश तत्व की बात की। उन्होंने कहा, “प्राण ही वह ऊर्जा है जो सारी सृष्टि को चलाती है। ये बिजली भी उसी प्राण का एक रूप है।” टेस्ला की आँखें चमक उठीं। वो बोले, “मैं सालों से सोच रहा था कि बिजली को बिना तार के कैसे भेजा जाए। आपने जो आकाश और प्राण की बात की, वो मेरे कॉइल के सिद्धांत से बिल्कुल मिलती है।” दोनों घंटों तक बात करते रहे। विवेकानंद ने संस्कृत श्लोक सुनाए, टेस्ला ने अपने प्रयोग समझाए।
स्वामी विवेकानंद का टेस्ला पर गहरा असर
विवेकानंद ने टेस्ला को समझाया कि ऊर्जा न तो बनती है, न मिटती है – ये वेदांत का मूल सिद्धांत है। ये बात टेस्ला के लिए बिजली का रहस्य खोलने वाली चाबी बन गई। टेस्ला ने बाद में लिखा, “विवेकानंद की बातों ने मुझे प्रेरणा दी कि मैं सारी दुनिया को एक ही ऊर्जा क्षेत्र से जोड़ सकता हूँ।” वॉर्डनक्लिफ टॉवर का सपना – पूरी दुनिया को मुफ्त बिजली देना – उसी मुलाकात का नतीजा था।
लापरवाही की परतें: हमने उस दोस्ती को क्यों भुला दिया?
विवेकानंद 1902 में चले गए, टेस्ला 1943 में। दोनों ने मिलकर जो सपना देखा था – प्राचीन भारतीय ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का मेल – उसे दुनिया ने गंभीरता से नहीं लिया। टेस्ला को पागल कहा गया, उनका टॉवर तोड़ दिया गया। भारत में भी विवेकानंद को सिर्फ़ धार्मिक गुरु मान लिया गया, उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भुला दिया गया। दोनों महान आत्माओं का वो संवाद आज किताबों की धूल में दबा पड़ा है।
भारत और दुनिया पर गहरा असर
अगर वो दोस्ती फलती-फूलती तो आज शायद:
- भारत के गाँवों में बिना तार की बिजली होती।
- वेदांत और विज्ञान एक साथ पढ़ाए जाते।
- दुनिया मुफ्त ऊर्जा के करीब पहुँच चुकी होती। विवेकानंद ने टेस्ला को भारत की आध्यात्मिक शक्ति दिखाई, टेस्ला ने विवेकानंद को विज्ञान की ताकत। ये मिलन पूर्व और पश्चिम की सबसे खूबसूरत दोस्ती थी।
विशेषज्ञों की जुबानी – अब भी वक्त है उस विरासत को समझने का
प्रसिद्ध भौतिकी वैज्ञानिक डॉ. जयंत नारलीकर कहते हैं, “विवेकानंद और टेस्ला की बातचीत आज भी प्रासंगिक है। प्राण और ऊर्जा का संबंध क्वांटम फील्ड थ्योरी से जुड़ता है।” वेदांत विशेषज्ञ स्वामी आत्माश्रद्धानंद बोले, “स्वामीजी ने टेस्ला को बताया कि ऊर्जा एक है। टेस्ला ने उसे तकनीक में बदलने की कोशिश की।” इतिहासकार डॉ. राधाकृष्णन पिल्लई कहते हैं, “ये दोस्ती साबित करती है कि सच्चा विज्ञान और सच्चा आध्यात्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।”
निष्कर्ष –
स्वामी विवेकानंद और निकोला टेस्ला की वो मुलाकात सिर्फ़ दो लोगों की बातचीत नहीं थी। ये दो महान सभ्यताओं का हाथ थामना था। एक ने कहा, “सारी शक्ति पहले से मौजूद है।” दूसरे ने कहा, “मैं उसे हर घर तक पहुँचा दूँगा।” पर हमने उस हाथ को छोड़ दिया। आज भी टेस्ला की बिजली तारों में कैद है, और विवेकानंद का संदेश मंदिरों तक सीमित है। शायद अब वक्त आ गया है कि हम दोनों को फिर से मिलाएँ। विवेकानंद की प्राण ऊर्जा को टेस्ला के कॉइल से जोड़ें। और दुनिया को वो सपना दिखाएँ जो दोनों ने 129 साल पहले देखा था।



