Jharkhand News: रिम्स रांची ने की बड़ी तैयारी, प्राइवेट अस्पतालों से रेफरल पर लगेगी लगाम, पूछे जाएंगे ये 3 कड़े सवाल
रिम्स रांची ने प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी रोकने के लिए 'शॉकिंग' कदम उठाया है। अब रेफर करने से पहले 3 सवालों का जवाब देना होगा।
						Jharkhand News: झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स रांची (राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान) ने प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी पर नकेल कसने के लिए एक और बड़ा कदम उठाने की तैयारी कर ली है। रिम्स रांची प्रबंधन एक ऐसी ‘अद्भुत’ नीति लागू करने जा रहा है, जिससे निजी अस्पतालों द्वारा गंभीर या मरणासन्न मरीजों को मनमाने तरीके से रिम्स रेफर करने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी।
रिम्स रांची के निदेशक डॉ. राजकुमार ने स्पष्ट किया है कि निजी अस्पतालों से आने वाले रेफरल मामलों में अब सख्त जांच-पड़ताल की जाएगी। उनका यह कदम उन निजी अस्पतालों के लिए एक चेतावनी है, जो मरीजों से लाखों रुपये वसूलने के बाद, स्थिति बिगड़ने पर उन्हें रिम्स को ‘डेथ ट्रांसफर स्टेशन’ बना देते हैं।
Jharkhand News: क्यों पड़ी इस नीति की जरूरत?
रिम्स रांची प्रबंधन के अनुसार, पिछले कुछ समय में यह चलन बहुत तेजी से बढ़ा है। कई निजी अस्पताल मरीजों का इलाज करते हैं, उनसे 10 लाख से 30 लाख रुपये तक का भारी-भरकम बिल वसूलते हैं और जब मरीज की हालत बेहद गंभीर हो जाती है या इलाज की कोई गुंजाइश नहीं बचती, तो वे अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए मरीज को रिम्स रांची रेफर कर देते हैं।
निदेशक ने बताया कि हाल ही में बोकारो से एक मरीज को 30 लाख रुपये खर्च कराने के बाद रिम्स भेजा गया। यहां तक कि ‘ब्रेन डेथ’ हो चुके मरीजों को भी वेंटिलेटर पर रखकर रिम्स रेफर किया जा रहा है। इस ‘अमानवीय’ प्रवृत्ति से रिम्स रांची की आपातकालीन सेवाओं पर न केवल अनावश्यक बोझ पड़ रहा है, बल्कि अस्पताल की मृत्यु दर पर भी गलत असर पड़ रहा है, जिससे इलाज पर सवाल उठते हैं।
रेफर करने से पहले देने होंगे इन 3 सवालों के जवाब
नई प्रस्तावित नीति के तहत, किसी भी निजी अस्पताल को मरीज रेफर करने से पहले रिम्स रांची प्रबंधन को लिखित में तीन कड़े सवालों का जवाब देना होगा:
- मरीज को रेफर क्यों किया जा रहा है? (इसका स्पष्ट चिकित्सीय कारण बताना होगा)।
 - मरीज की वर्तमान स्थिति क्या है और अब उसे क्यों स्थानांतरित किया जा रहा है?
 - गंभीर स्थिति या सर्जरी के दौरान निजी अस्पताल में मरीज को क्या उपचार दिया गया?
 
डॉ. राजकुमार ने दो टूक कहा कि यदि निजी अस्पताल इन सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं देते हैं या बिना समन्वय के गंभीर मरीज को भेजते हैं, तो ऐसे मरीजों की भर्ती रिम्स रांची में नहीं की जाएगी। उन्हें रेफर करने से पहले रिम्स निदेशक से मिलना अनिवार्य होगा।
रिम्स किसी का बैकअप सेंटर नहीं है
निदेशक ने कड़े शब्दों में कहा कि “रिम्स रांची किसी निजी अस्पताल का बैकअप सेंटर या रेस्क्यू हॉस्पिटल नहीं है।” यह राज्य का अंतिम और सबसे बड़ा चिकित्सा संस्थान है। जो अस्पताल लाखों रुपये लेकर इलाज अधूरा छोड़ देते हैं, उन्हें यह समझना होगा कि रिम्स जिम्मेदारी से भागने की जगह नहीं है।
यह ‘कदम मरीज हित में उठाया जा रहा है। इससे रेफरल सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी।
गवर्निंग बॉडी की बैठक में आएगा प्रस्ताव
रिम्स रांची प्रबंधन इस नई ‘अद्भुत’ नीति को औपचारिक रूप देने की तैयारी में है। आगामी 12 नवंबर को होने वाली गवर्निंग बॉडी (जीबी) की बैठक में इस प्रस्ताव को एजेंडा के रूप में रखा जाएगा। इस मुद्दे पर स्वास्थ्य मंत्री से भी बात हो चुकी है। राज्य सरकार और स्वास्थ्य सचिव की सहमति मिलते ही इसे तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया जाएगा।
बढ़ रहा है रेफर मरीजों का बोझ
आंकड़ों के मुताबिक, रिम्स रांची में प्रतिदिन 50 से अधिक गंभीर मरीज विभिन्न निजी अस्पतालों से रेफर होकर आते हैं। इनमें से 30 प्रतिशत की हालत बेहद नाजुक होती है। रिम्स में पहले ही रोजाना औसतन 3500 से अधिक मरीज ओपीडी में आते हैं और 2400 से अधिक बेड लगभग हमेशा भरे रहते हैं। ऐसे में, यह ‘शॉकिंग’ कदम रिम्स रांची के डॉक्टरों और संसाधनों पर पड़ रहे अतिरिक्त दबाव को कम करने के लिए बेहद जरूरी माना जा रहा है।
				
					


