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Bihar Chunav: ‘नीतीश नहीं तो कोई नहीं’, क्या बिहार में फिर से ‘दुलरुआ’ के सामने होंगे PM मोदी के ‘हनुमान’?

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हाइलाइट्स
  • नीतीश कुमार की घटती लोकप्रियता से बिहार की राजनीति गर्म
  • चिराग पासवान की मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा बढ़ी
  • बीजेपी की चुप्पी से सियासी समीकरण जटिल
पटना।बिहार की सियासत में चुनावी घमासान तेज होता जा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व पर सवाल उठने लगे हैं, वहीं एलजेपी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान की मुख्यमंत्रित्व की इच्छा खुलकर सामने आ गई है। पीएम मोदी के ‘हनुमान’ कहे जाने वाले चिराग की बढ़ती सक्रियता ने एनडीए के भीतर नए समीकरणों को जन्म दे दिया है।
बिहार में शनिवार को सियासी हलचल उस वक्त और तेज हो गई जब चिराग पासवान ने हालिया सर्वे में अपनी लोकप्रियता में 2% की बढ़ोतरी से उत्साहित होकर संकेत दे दिए कि वे अब सिर्फ सहयोगी नहीं, नेतृत्वकारी भूमिका की ओर देख रहे हैं। हालांकि उन्होंने सीधे तौर पर नीतीश कुमार के नाम का विरोध नहीं किया है, लेकिन उनके बयानों और राजनीतिक गतिविधियों से साफ है कि वे 2025 के चुनाव में खुद को सीएम पद के विकल्प के रूप में पेश करना चाहते हैं।
वहीं, नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार ने यह कहकर राजनीतिक हलचल बढ़ा दी कि “नीतीश नहीं तो कोई नहीं”। उनका दावा है कि एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री पद के लिए उनके पिता ही चेहरा होंगे। यह बयान एनडीए के भीतर नेतृत्व को लेकर उठ रहे सवालों को और हवा दे रहा है।
बिहार की सियासत में इस बार युवा चेहरों की भरमार है। तेजस्वी यादव, प्रशांत किशोर, चिराग पासवान, मुकेश सहनी, निशांत कुमार और पूर्व आईपीएस शिवदीप लांडे जैसे नेता मैदान में हैं, जो राज्य की राजनीति को एक नया मोड़ दे सकते हैं। इन नेताओं की सक्रियता से यह चुनाव बुजुर्ग बनाम युवा नेतृत्व की सीधी टक्कर में बदलता नजर आ रहा है।
बीजेपी इस पूरे सियासी घमासान में चुप्पी साधे हुए है। हालांकि हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी द्वारा सम्राट चौधरी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने के बयान ने जेडीयू को बेचैन कर दिया था। बाद में भाजपा ने सफाई दी कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे, लेकिन संसदीय बोर्ड की मंजूरी की शर्त ने इस बात पर संशय पैदा कर दिया कि क्या वास्तव में एनडीए पूरी तरह से नीतीश के पीछे एकजुट है।
इधर, विपक्ष भी नीतीश कुमार की उम्र और स्वास्थ्य को मुद्दा बनाकर लगातार हमलावर है। तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर दोनों ने हाल के दिनों में यह सवाल बार-बार उठाया है कि क्या नीतीश अब भी बिहार के नेतृत्व के लिए सक्षम हैं।
इन सभी सियासी घटनाक्रमों के बीच बिहार चुनाव 2025 की तस्वीर धीरे-धीरे साफ हो रही है—जहां गठबंधन से ज्यादा महत्व नेतृत्व की लड़ाई का होता जा रहा है। ‘दुलरुआ’ बनाम ‘हनुमान’ की यह टक्कर न सिर्फ एनडीए को भीतर से झकझोर सकती है, बल्कि राज्य की सियासी दिशा भी तय कर सकती है।

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